Showing posts with label तमाशा. Show all posts
Showing posts with label तमाशा. Show all posts

Sunday, October 20, 2019

खुलते-खुलते रह गई मेरी ज़ुबाँ
इक तमाशा होते-होते रह गया
- राजेश रेड्डी

Sunday, November 6, 2016

यह तो किया कि सब पे भरोसा नहीं किया

यह तो किया कि सब पे भरोसा नहीं किया
लेकिन किसी के साथ में धोखा नहीं किया

घर से बुला के लाई हैं, घर की ज़रूरतें
मैंने ख़ुशी से पर ये दरिया नहीं किया

सारे चिराग़ मैंने लहू से जलाये हैं
जुगनू पकड़ के घर में उजाला नहीं किया

ऐसा न था के दर्द से बेचैन भी न थे
लेकिन सड़क पे कोई तमाशा नहीं किया

'मश्कूर' मैंने उम्र गरीबी में काट दी
लेकिन किसी अमीर को सजदा नहीं किया

-मश्कूर अली

Saturday, April 13, 2013

मदारी मंच पर आकर नये करतब दिखाता है,
तमाशा देखता है मुल्क़ औ ताली बजाता है ।

कभी मैं सोचता हूँ कि ये साज़िश ख़त्म कब होगी,
न कोई चीखता है न कोई हल्ला मचाता है ।
-अवनीश कुमार
 

Tuesday, February 12, 2013

हद से बढ़ के तअल्लुक़ निभाया नहीं,
मैंने इतना भी खुद तो गंवाया नहीं ।

उम्र सारी तमाशों में गुज़री मगर,
मैंने ख़ुद को तमाशा बनाया नहीं ।
-वसीम बरेलवी

 

Wednesday, October 24, 2012

हमदर्दियाँ, ख़ुलूस, दिलासे, तसल्लियाँ,
दिल टूटने के बाद, तमाशे बहुत हुए
-शायर: नामालूम

Friday, October 12, 2012

जो शख़्स मुद्दतों मेरे शैदाइयोँ में था
आफ़त के वक़्त वो भी तमाशाइयोँ में था
-शकीला बानो