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Sunday, January 27, 2019

उस ने फेंका मुझ पे पत्थर और मैं पानी की तरह
और ऊँचा और ऊँचा और ऊँचा हो गया
-कुँअर बेचैन

Saturday, October 8, 2016

शीतल है मगर आग भी है प्यार को छूना

शीतल है मगर आग भी है प्यार को छूना
ज्यों देर तलक बर्फ़ की दीवार को छूना

आसाँ है बहुत साज़ के हर तार को छूना
मुश्किल है मगर तार की झंकार को छूना

है इनमें लहू और पसीना मेरा शामिल
अच्छा लगा दर को कभी दीवार को छूना

हर सुर्खी में उड़ती हुईं चिंगारियां देखीं
मंहगा ही पड़ा आँखों से अखबार को छूना

ऐ मौत, तुझे मौत न आ जाए संभल जा
कुछ खेल नहीं साहिबे-किरदार को छूना

-कुँअर बेचैन

Sunday, December 1, 2013

जिस तरफ भी गयीं दृष्टियाँ
दृश्य ये ही पुराने मिले
ज़िन्दगी की कड़ी धूप में
काँच के शामियाने मिले
-कुँअर बेचैन

Friday, July 5, 2013

उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे

उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे

उसने पोंछे ही नहीं अश्क़ मेरी आँखों से
मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे

बस उसी दिन से ख़फ़ा है वो मेरा इक चेहरा
धूप में आईना इक रोज दिखाया था जिसे

छू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर गई
इक ग़ज़ल शौक़ से मैंने कभी गाया था जिसे

दे गया घाव वो ऐसे कि जो भरते ही नहीं
अपने सीने से कभी मैंने लगाया था जिसे

होश आया तो हुआ यह कि मेरा इक दुश्मन
याद फिर आने लगा मैंने भुलाया था जिसे

वो बड़ा क्या हुआ सर पर ही चढ़ा जाता है
मैंने काँधे पे `कुँअर' हँस के बिठाया था जिसे

-कुँअर बेचैन

सबकी बात न माना कर

सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर

दुनिया से लड़ना है तो
अपनी ओर निशाना कर

या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर

बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर

बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर

शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर
-कुँअर बेचैन

Thursday, May 23, 2013

हजारों खुशबुएं दुनिया में हैं, पर उससे कमतर हैं,
किसी भूखे को जो सिकती हुई रोटी से आती है

ये माना आदमी में फूल जैसे रंग हैं लेकिन,
'कुँअर' तहज़ीब की खुशबू मुहब्बत ही से आती है
-कुँअर बेचैन

Saturday, November 3, 2012

अब ये हम पर है कि उसको कौन-सा हम नाम दें,
ज़िन्दगी जंगल भी है और ज़िन्दगी मधुबन भी है

तोतली बोली में बच्चों से मैं बोला तो लगा,
चाहे कोई उम्र हो मुझमें, कहीं बचपन भी है
-कुँअर बेचैन
शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई-सी तुम
ज़िन्दगी है धूप, तो मदमस्त पुरवाई-सी तुम

आज मैं बारिश मे जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थी मुझमें अंगड़ाई-सी तुम

चाहे महफ़िल में रहूं चाहे अकेले में रहूं
गूंजती रहती हो मुझमें शोख शहनाई-सी तुम

लाओ वो तस्वीर जिसमें प्यार से बैठे हैं हम
मैं हूं कुछ सहमा हुआ-सा, और शरमाई-सी तुम

मैं अगर मोती नहीं बनता तो क्या बनता 'कुँअर'
हो मेरे चारों तरफ सागर की गहराई-सी तुम
-कुँअर बेचैन

Monday, October 22, 2012

वही मैंने किया जो दिल में ठाना
भले ही कुछ कहे सारा ज़माना

जो आंसू दुनिया की ख़ातिर बहे हैं
उन्ही की बूँद में सागर समाना

लुटाओ जितना, उतनी ही बढ़ेगी
मुहब्बत है ही इक ऐसा ख़जाना

जलेगा तो करेगा सबको बेघर
वो तेरा हो या मेरा आशियाना

कि उसने मौत में भी ज़िन्दगी दी
हुआ है काम ये इक शायराना

रहेगा रोज सांसों की तरह ही
मेरे घर पे ये तेरा आना-जाना
-कुँअर बेचैन

Friday, October 19, 2012

कैसी विडंबना है

जिस दिन ठिठुर रही थी
कुहरे-भरी नदी, माँ की उदास काया।
लानी थी गर्म चादर; मैं मेज़पोश लाया।

कैसा नशा चढ़ा है
यह आज़ टाइयों पर
आँखे तरेरती हैं
अपनी सुराहियों पर
मन से ना बाँध पाई रिश्तें गुलाब जैसे
ये राखियाँ बँधी हैं केवल कलाइयों पर

कैसी विडंबना है

जिस दिन मुझे पिता ने,
बैसाखियाँ हटाकर; बेटा कहा, बुलाया।
मैं अर्थ ढूँढ़ने को तब शब्दकोश लाया।

तहज़ीब की दवा को
जो रोग लग गया है
इंसान तक अभी तो
दो-चार डग गया है
जाने किसे-किसे यह अब राख में बदल दे
जो बर्फ़ को नदी में चंदन सुलग गया है

कैसी विडंबना है

इस सभ्यता-शिखर पर
मन में जमी बरफ़ ने इतना धुँआ उड़ाया।
लपटें न दी दिखाई; सारा शहर जलाया।
-कुँअर बेचैन
कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई
आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई

'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है
प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई

ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई

रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे
मैंने देखा तो नहीं, मुझमें मगर है कोई

एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना
यार तू यह तो बता यह भी नज़र है कोई

प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं
काट दो, काट दो गर दिल में भँवर है कोई

मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई

सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई

-कुँअर बेचैन
हो के मायूस न यूं शाम-से ढलते रहिये
ज़िन्दगी भोर है सूरज-से निकलते रहिये

एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे
धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये

आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह
दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये

शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है
आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये

प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर'
मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये
-कुँअर बेचैन

Wednesday, October 17, 2012

सबको वश में कर लेगा
प्यार है सचमुच जादूगर
आंधी - तूफां आयेंगे
लेकिन डरना नहीं 'कुँअर'
-कुँअर बेचैन

Tuesday, October 16, 2012

जितने भी मयखाने हैं
सब तेरे दीवाने हैं

तेरे चितवन के आगे
सारे तीर पुराने हैं

शमा बुझी उनसे पहले
हैरत में परवाने हैं

जिन्हें न पढ़ पाए हम खुद
हम ऐसे अफ़साने हैं

कैसे खुद को ढूँढोगे
हर मन में तहखाने हैं

वो अपने निकले, जिनको
हम समझे बेगाने हैं
 -कुँअर बेचैन
ख़ुशी में खुश हुए, तो ग़म में घबराना ही पड़ता है,
जिए कितना ही कोई, फिर भी मर जाना ही पड़ता है

मिलन की ठंडकों के बाद बिछुड़न की जलन भी है,
कि नदिया में नहाकर रेत पर आना ही पड़ता है

ये माना उम्र भर औरों से टकराते हैं हम लेकिन,
कभी यूं भी हुआ खुद से भी टकराना ही पड़ता है

वो आयेंगे, वो आयेंगे, वो आयेंगे, वो आयेंगे,
ये कह-कहकर 'कुँअर' इस दिल को समझाना ही पड़ता है
 -कुँअर बेचैन

Friday, October 12, 2012

गगन में जब अपना सितारा न देखा,
तो जीने का कोई सहारा न देखा

नज़र है, मगर वो नज़र क्या कि जिसने,
खुद अपनी नज़र का नज़ारा न देखा

भले वो डुबाए, उबारे कि हमने,
भंवर देख ली तो किनारा न देखा

वो बस नाम का आईना है की जिसने,
कभी हुस्न को खुद संवारा न देखा

तुम्हे जब से देखा, तुम्हे देखते हैं,
कभी मुड़ के खुद को दुबारा न देखा

सभी नफरतों की दवा है मुहब्बत,
कि इससे अलग कोई चारा न देखा

मैं बादल में रोया, हँसा बिजलियों में,
किसी ने ये मेरा इशारा ने देखा

'कुँअर' हम उसी के हुए जा रहे हैं,
जिसे हमने अब तक पुकारा न देखा
-कुँअर बेचैन

Thursday, October 11, 2012

मैं चलते-चलते इतना थक गया हूँ, चल नहीं सकता,
मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नहीं सकता

मैं ये अहसास लेकर, फ़िक्र करना छोड़ देता हूँ,
जो होना है, वो होगा ही, कभी वो टल नहीं सकता
-कुँअर बेचैन
राहों से जितने प्यार से, मंज़िल ने बात की,
यूं दिल से मेरे आपके भी दिल ने बात की

फिर धड़कनों ने धड़कनों की बात को सुना,
यूं चुप्पियों में रह के भी महफ़िल ने बात की

हैरत में सिर्फ मैं ही नहीं, आप भी तो थे,
जब मेरे हक़ में इक मेरी मुश्किल ने बात की

उस पार तुम थे और मैं इस पार था मगर
साहिल से जैसे दूसरे साहिल ने बात की

खुद अपना चेहरा देख के वो कितना डर गया,
जिस वक़्त अपने-आप से क़ातिल ने बात की
-कुँअर बेचैन
मयखाना तेरी आँखें, मय जाम में ढालूं क्या,
हैं होंठ तेरे अमृत, मैं प्यास बुझा लूं क्या

अब नींद भी आँखों से, ये पूछ के आती है,
आने से ज़रा पहले, कुछ ख़्वाब सजा लूं क्या

तस्वीर तेरी माना, बोली है न बोलेगी,
मैं उससे भी पूछूं हूँ, सीने से लगा लूं क्या

बाहर के अँधेरे से, भीतर के उजाले तक,
मैं देह का पर्दा हूँ, मैं खुद को हटा लूं क्या
-कुँअर बेचैन

Wednesday, October 10, 2012

घिरा रहता हूँ मैं भी आजकल अनगिन विचारों में

घिरा रहता हूँ मैं भी आजकल अनगिन विचारों में
कि जैसे इक अकेला चाँद इन लाखों सितारों में

किसे मालूम था वो वक़्त भी आ जाएगा इक दिन
कि खुद ही बाग़वां अंगार रख देंगे बहारों में

नदी तो है समंदर की, उधर ही जा रही है वो
है फिर भी ज़ंग ज़ारी क्यों नदी के दो किनारों में

अब हम लफ़्ज़ों से बाहर हैं हमें मत ढूंढिए साहब
हमारी बात होती है इशारों ही इशारों में

चमन में तितलियाँ हों या की भंवरे, रहना पड़ता है
इन्ही फूलों, इन्ही तीख़े नुकीले तेज़ खारों में

मुहब्बत की दुल्हन बैठी ही थी इस दिल की डोली में
कि फिर होने लगी साज़िश उधर बैठे कहारों में

कुछ ऐसे खेल भी हैं बीच में ही छूट जाते हैं
मैं ऐसा ही खिलाडी हूँ, न जीतों में न हारों में

छुपाने का हुनर हमने उजालों में नहीं देखा
'कुँअर' शामिल न कर लेना इन्हें तुम राजदारों में
-कुँअर बेचैन