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Saturday, June 15, 2019

आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया

आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया
मैं इस क़दर उड़ा कि ख़लाओं में खो गया

(ख़लाओं = अँतरिक्षों)

कतरा रहे हैं आज के सुक़रात ज़हर से
इंसान मस्लहत की अदाओं में खो गया

(मस्लहत = समझदारी, हित, भलाई)

शायद मिरा ज़मीर किसी रोज़ जाग उठे
ये सोच के मैं अपनी सदाओं में खो गया

(सदाओं = आवाज़ों)

लहरा रहा है साँप सा साया ज़मीन पर
सूरज निकल के दूर घटाओं में खो गया

मोती समेट लाए समुंदर से अहल-ए-दिल
वो शख़्स बे-अमल था दुआओं में खो गया

(अहल-ए-दिल = दिल वाले), (बे-अमल = बिना कर्म के)

ठहरे हुए थे जिस के तले हम शिकस्ता-पा
वो साएबाँ भी तेज़ हवाओं में खो गया

(शिकस्ता-पा = मजबूर, असहाय, लाचार), (साएबाँ = शामियाना, मण्डप)

-कामिल बहज़ादी

Tuesday, May 7, 2019

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम

ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
किसी के दिल में उतर जाना चाहते हैं हम

(ब-रंग-ए-नग़मा = राग/ लय/ तराने के रंग की तरह)

ज़माना और अभी ठोकरें लगाए हमें
अभी कुछ और सँवर जाना चाहते हैं हम

उसी तरफ़ हमें जाने से रोकता है कोई
वो एक सम्त जिधर जाना चाहते हैं हम

(सम्त = तरफ़, दिशा की ओर)

वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
हमें न रोक कि घर जाना चाहते हैं हम

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

नदी के पार खड़ा है कोई चराग़ लिए
नदी के पार उतर जाना चाहते हैं हम

उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
जो कह रहे हैं कि मर जाना चाहते हैं हम

कुछ इस अदा से कि कोई चराग़ भी न बुझे
हवा की तरह गुज़र जाना चाहते हैं हम

ज़ियादा उम्र तो होती नहीं गुलों की मगर
गुलों की तरह निखर जाना चाहते हैं हम

-वाली आसी

Wednesday, February 13, 2019

खो न जाए कहीं हर ख़्वाब सदाओं की तरह

खो न जाए कहीं हर ख़्वाब सदाओं की तरह
ज़िंदगी महव-ए-तजस्सुस है हवाओं की तरह

(सदाओं = आवाज़ों), (महव-ए-तजस्सुस = तलाश में तल्लीन/ तन्मय/ डूबी हुई)

टूट जाए न कहीं शीशा-ए-पैमान-ए-वफ़ा
वक़्त बे-रहम है पत्थर के ख़ुदाओं की तरह

हम से भी पूछो सुलगते हुए मौसम की कसक
हम भी हर दश्त पे बरसे हैं घटाओं की तरह

(दश्त = जंगल)

बारहा ये हुआ जा कर तिरे दरवाज़े तक
हम पलट आए हैं नाकाम दुआओं की तरह

कभी माइल-ब-रिफ़ाक़त कभी माइल-ब-गुरेज़
ज़िंदगी हम से मिली तेरी अदाओं की तरह

(माइल-ब-रिफ़ाक़त = मेल-जोल की प्रवृति), (माइल-ब-गुरेज़ = दूर रहने की प्रवृति)

-मुमताज़ राशिद

Monday, October 20, 2014

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
वो हुस्न जिसकी तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ

 (दीद= दर्शन, दीदार), (मसर्रतें = ख़ुशियाँ), (पिन्हाँ = आंतरिक, छिपा हुआ)

हज़ार फ़ित्ने, तहे-पा-ए-नाज़ ख़ाकनशीं
हर एक निगाह ख़ुमारे-शबाब से रंगीं

(फ़ित्ने = उपद्रव), (तहे-पा-ए-नाज़ = सुंदरता/नाज़ो-अदा/ मान-अभिमान के पैर के नीचे), (ख़ाकनशीं = दीन, दुखी, लाचार), (ख़ुमारे-शबाब = यौवन-मद)

शबाब, जिससे तख़य्युल पे बिजलियाँ बरसें
वक़ार जिसकी रफ़ाक़त को शोख़ियाँ तरसें

(तख़य्युल = कल्पना), (वक़ार = गरिमा, प्रतिष्ठा, सम्मान, मान-मर्यादा), (रफ़ाक़त = मैत्री, दोस्ती, संगत, साथ)

अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़े-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां

(अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा = पैरों के डगमगाने की अदा), (बयाज़े-रुख़ = चेहरे का गोरा रंग), (सहर = सुबह), (सबाहतें = सफ़ेदी, रौशनी, सुंदरता)

सियाह ज़ुल्फ़ों में वारफ़्ता नकहतों का हुजूम
तवील रातों की ख़्वाबीदा राहतों का हुजूम

(सियाह = काली), (वारफ़्ता = खोया हुआ, आत्मविस्मृत, बेसुध, बेख़ुद), (नकहतों = सुगंध, ख़ुशबू), (हुजूम = जान-समूह, भीड़-भाड़)

 (तवील = लम्बी), (ख़्वाबीदा =सोई हुई, सुप्त)

वो आँख जिसके बनाव पे ख़ालिक इतराये
ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये

(ख़ालिक = सृष्टा)

वो होंठ, फ़ैज़ से जिनके, बहारे-लालःफरोश
बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील ब-दोश

(फ़ैज़ = दानशीलता), (बहारे-लालःफरोश = लाल फूल बेचने वाली बहारें), (बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील = जन्नत और उसकी नहरें), (ब-दोश = कंधे पर लिए हुए)

गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे
दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही नमाज़ करे

(गुदाज़ = मृदुल, मांसल), (क़बा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा), (दराज़ = लंबा), (सर्वे-सही = सर्व के सीधे पेड़)

ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम नहीं
वो हुस्न जिसका तस्सवुर बशर का काम नहीं

(मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम = परिचय या नाम का मुहताज), (तस्सवुर = कल्पना, ख़याल), (बशर = मनुष्य, इंसान)

किसी ज़माने में इस रहगुज़र से गुज़रा था
ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल इधर से गुज़रा था

(ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल = सैकड़ों अभिमान और सौंदर्य/ हुस्न लेकर)

और अब ये राहगुज़र भी है दिलफ़रेब-ओ-हसीं
है इसकी ख़ाक मे कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र मकीं

(कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र = मदिरा और कविता की मादकता), (मकीं = बसा हुआ)

हवा मे शोख़ी-ए-रफ़्तार की अदाएँ हैं
फ़ज़ा मे नर्मी-ए-गुफ़्तार की सदाएँ हैं

(शोख़ी-ए-रफ़्तार = चाल की चंचलता), (नर्मी-ए-गुफ़्तार = वाणी की कोमलता), (सदाएँ = आवाज़ें)

गरज़ वो हुस्न अब इस राह का ज़ुज़्वे-मंज़र है
नियाज़-ए-इश्क़ को इक सज्दागाह मयस्सर है

(ज़ुज़्वे-मंज़र = दृश्य का अंश), (नियाज़-ए-इश्क़ = प्रेम की कामना)

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


आबिदा परवीन/ Abida Parveen



Saturday, August 23, 2014

रात भी, नींद भी, कहानी भी
हाय, क्या चीज़ है जवानी भी

एक पैग़ाम-ए-ज़िन्दगानी भी
आशिक़ी मर्गे-नागहानी भी

[(पैग़ाम-ए-ज़िन्दगानी = जीवन का सन्देश), (मर्गे-नागहानी= अचानक आने वाली मौत)]

इस अदा का तेरी जवाब नहीं
मेहरबानी भी, सरगरानी भी

(सरगरानी = गुस्सा, रोष, अप्रसन्नता)

दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में
कुछ बलायें थी आसमानी भी

मंसबे-दिल खुशी लुटाना है
ग़मे-पिन्हाँ की पासबानी भी

[(मंसबे-दिल = दिल का काम/ कर्तव्य/ फ़र्ज़), (ग़मे-पिन्हाँ = छिपा हुआ दुःख), (पासबानी = निरीक्षण, निगरानी)]

दिल को शोलों से करती है सेराब
ज़िन्दगी आग भी है, पानी भी

(सेराब = भीगा हुआ, पानी से सींचा हुआ)

शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
दिले-गमगीं की शादमानी भी

(शादकाम= प्रसन्नचित, कामयाब), (तौफ़ीक= काबिलियत, सामर्थ्य, शक्ति), (शादमानी = खुशी)]

लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है
उन निगाहों की बदगुमानी भी

तंगना-ए-दिले-मलूल में है
बहर-ए-हस्ती की बेकरानी भी

(तंगना-ए-दिले-मलूल = दुखी ह्रदय की सीमा), (बहर-ए-हस्ती = ज़िन्दगी का समन्दर),  (बेकरानी = जिसका किनारा न हो, अपार, असीम)

इश्क़े-नाकाम की है परछाई
शादमानी भी, कामरानी भी

(शादमानी = खुशी), (कामरानी = कामयाबी, सफ़लता)

देख दिल के निगारखाने में
ज़ख्म-ए-पिन्हाँ की है निशानी भी

निगारखाना = (चित्रालय, सजा हुआ मकान, मूर्तिग्रह), (ज़ख्म-ए-पिन्हाँ = आंतरिक घाव)

ख़ल्क़ क्या क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूं मैं तेरी ज़ुबानी भी

(खल्क = दुनिया, सृष्टी, जगत)

आये तारीख़-ए-इश्क़ में सौ बार
मौत के दौरे- दरमियानी भी

(तारीख़-ए-इश्क़ = मोहब्बत का इतिहास)
दौर=वक्त, समय दरमियानी=बीच में

अपनी मासूमियों के परदे में
हो गई वो नज़र सयानी भी

दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल
रात को है वो रातरानी भी

(नौगुल = नया फ़ूल)

दिले-बदनाम तेरे बारे में
लोग कहते हैं इक कहानी भी

वज़्अ करते कोई नयी दुनिया
कि ये दुनिया हुई पुरानी भी

(वज़्अ  करते  = बनाते)

दिल को आदाबे-बंदगी भी ना आये
कर गये लोग हुक्मरानी भी

[(आदाबे-बंदगी = सेवाभाव), (हुक्मरानी = शासन चलाना, हुकूमत करना)]

जौरे-कमकम का शुक्रिया बस है
आप की इतनी मेहरबानी भी

(जौर = कहर)

दिल में एक हूक सी उठे ऐ दोस्त
याद आई तेरी जवानी भी

सर से पा तक सुपुर्दगी की अदा
एक अन्दाजे-तुर्कमानी भी

[(पा = पांव), (सुपुर्दगी=समर्पण), (तुर्कमानी=विद्रोही)

पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी, मेज़बानी भी

जो ना अक्स-ए-जबीं-ए-नाज़ की है
दिल में इक नूर-ए-कहकशानी भी

(अक्स-ए-जबीं-ए-नाज़ = किसी प्यारे का चेहरा), (नूर = प्रकाश), (कहकशां = आकाश गंगा)

ज़िन्दगी ऐन दीद-ए-यार ’फ़िराक़’
ज़िन्दगी हिज्र की कहानी भी

[(ऐन=  ठीक, सटीक, असलियत में), (दीद = दर्शन), (हिज्र = बिछोहजुदाई)]

-फ़िराक़ गोरखपुरी


Sunday, August 11, 2013

ज़ख़्म को फूल, तो सरसर को सबा कहते हैं
जाने क्या दौर है, क्या लोग हैं, क्या कहते हैं

[(सरसर = आँधी), (सबा = पुरवाई, शीतल हवा, मंद समीर)]

क्या क़यामत है, के जिन के लिये, रुक रुक के चले
अब वही लोग हमें आबला-पा कहते हैं

(आबला-पा = छाले वाले पाँव)

कोई बतलाओ के इक उम्र का बिछड़ा महबूब
इत्तेफ़ाक़न कहीं मिल जाये तो क्या कहते हैं

ये भी अन्दाज़-ए-सुख़न है के जफ़ा को तेरी
ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा कहते हैं

(अन्दाज़-ए-सुख़न = बात कहने का अंदाज़), (जफ़ा  = जुल्म, अत्याचार), (ग़म्ज़ा = प्रेमिका का नखरा और हाव-भाव), (इश्वा = सुन्दर स्त्री का हाव-भाव), (ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा = नखरे, अंदाज़ और अदा)

जब तलक दूर है तू, तेरी परस्तिश कर लें
हम जिसे छू न सकें, उस को ख़ुदा कहते हैं

(परस्तिश = पूजा, आराधना)

क्या त'अज्जुब है, के हम अह्ल-ए-तमन्ना को, फ़राज़
वो जो, महरूम-ए-तमन्ना हैं, बुरा कहते हैं

(अह्ल-ए-तमन्ना = इच्छुक लोग), (महरूम-ए-तमन्ना = इच्छा से रहित)

-अहमद फ़राज़

Monday, February 25, 2013

मिलते हैं इस अदा से कि गोया ख़फ़ा नहीं,
क्या आपकी निगाह से हम आशना नहीं ।
-हसरत मोहानी

(आशना = परिचित)
 

Saturday, February 23, 2013

तुम्हें ख़ूबसूरत नज़र आ रही हैं,
ये राहें तबाही के घर जा रही हैं।

अभी तुमको शायद पता भी नहीं है,
तुम्हारी अदाएँ सितम ढा रही हैं।

कहीं जल न जाए नशेमन हमारा,
हवाएँ भी शोलों को भड़का रही हैं।

हम अपने ही घर में पराये हुए हैं,
सियासी निगाहें ये समझा रही हैं।

गल़त फ़ैसले नाश करते रहे हैं,
लहू भीगी सदियाँ ये बतला रही हैं।

'तुषार' उनकी सोचों को सोचा तो जाना,
दिलों में वो नफरत को फैला रही हैं।

-नित्यानंद 'तुषार'
 

Sunday, January 27, 2013

कुछ इस अदा से आज वह पहलूनशीं रहे,
जब तक हमारे पास रहे,  हम नहीं रहे।
-जिगर मुरादाबादी

Saturday, December 15, 2012

कुछ इस अदा से यार ने पूछा मेरा मिज़ाज,
कहना ही पड़ा शुक्र है परवरदिगार का।
-जलील मानिकपुरी

Tuesday, October 2, 2012

आप खुद ही अपनी अदाओं में ज़रा ग़ौर कीजिये
हम अर्ज़ करेंगे तो शिकायत होगी
-अहमद फ़राज़
हर अदा गोया पयामे ज़िन्दगी देती हुई,
सुबह तेरे हुस्न में अंगड़ाइयाँ लेती हुई !
-फिराक गोरखपुरी

Friday, September 28, 2012

मुस्कुराहट, चाल, तेवर, गुफ्तगू, तऱ्जे-ख़िराम
हर अदा उतरे है दिल में मीर के अशआर सी
-
राजेन्द्र नाथ 'रहबर'