लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
(लफ़्ज़ ओ मंज़र = शब्द और दृश्य), (मआनी = अर्थ, मतलब, माने)
वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो
(तर्क-ए-तमन्ना = इच्छाओं/ चाहतों का त्याग)
बंद आँखों में हैं नादीदा ज़माने पैदा
खुली आँखों ही से हर चीज़ को देखा न करो
(नादीदा = अदृष्ट, अप्रत्यक्ष, अगोचर, Unseen)
दिन तो हंगामा-ए-हस्ती में गुज़र जाएगा
सुब्ह तक शाम को अफ़्साना-दर-अफ़्साना करो
(हंगामा-ए-हस्ती = जीवन की उथल-पुथल/ अस्तव्यस्तता)
-महमूद अयाज़
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
(लफ़्ज़ ओ मंज़र = शब्द और दृश्य), (मआनी = अर्थ, मतलब, माने)
वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो
(तर्क-ए-तमन्ना = इच्छाओं/ चाहतों का त्याग)
बंद आँखों में हैं नादीदा ज़माने पैदा
खुली आँखों ही से हर चीज़ को देखा न करो
(नादीदा = अदृष्ट, अप्रत्यक्ष, अगोचर, Unseen)
दिन तो हंगामा-ए-हस्ती में गुज़र जाएगा
सुब्ह तक शाम को अफ़्साना-दर-अफ़्साना करो
(हंगामा-ए-हस्ती = जीवन की उथल-पुथल/ अस्तव्यस्तता)
-महमूद अयाज़