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Saturday, May 4, 2019

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो

(लफ़्ज़ ओ मंज़र = शब्द और दृश्य), (मआनी = अर्थ, मतलब, माने)

वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो

(तर्क-ए-तमन्ना = इच्छाओं/ चाहतों का त्याग)

बंद आँखों में हैं नादीदा ज़माने पैदा
खुली आँखों ही से हर चीज़ को देखा न करो

(नादीदा = अदृष्ट, अप्रत्यक्ष, अगोचर, Unseen)

दिन तो हंगामा-ए-हस्ती में गुज़र जाएगा
सुब्ह तक शाम को अफ़्साना-दर-अफ़्साना करो

(हंगामा-ए-हस्ती = जीवन की उथल-पुथल/ अस्तव्यस्तता)

-महमूद अयाज़