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Sunday, June 9, 2013

खोली है ज़ौक-ए-दीद ने आँखें तेरी अगर,
हर रहगुज़र में नक़्श-ए-कफ-ए-पा-ए-यार देख
माना की तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं,
तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख
-इक़बाल

हालांकी तू जवां है मुटलउ है आज भी,
फिर भी मुझे है कितना ऐतबार देख
खुदवा रहा हूँ कब्र अभी से तेरे लिए,
तू  मेरा शौक देख तू  मेरा इंतज़ार देख
-पौपुलर मेरठी
ज़िंदगी में दो ही लम्हे मुझ पे गुज़रे है कठिन,
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
-बहादुर शाह ज़फ़र


कर गई घर मेरा खाली मेरे सो जाने के बाद,
मुझको धड़का था की कुछ होगा तेरे आने के बाद
मैंने दोनों बार थाने में लिखाई थी रपट,
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद
-पौपुलर मेरठी, 

Thursday, May 30, 2013

कमर बांधे हुए चलने को यां सब यार बैठे हैं, बहुत आगे गए, बाकी जो हैं, तैयार बैठे हैं
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी! राह लग अपनी, तुझे अठखेलियाँ सूझी हैं, हम बेज़ार बैठे हैं
-इंशा

उधर महफ़िल में वो हैं जिस तरफ अग्यार बैठे हैं, जो हम इस पार बैठे है तो वो उस पार बैठे हैं
ज़रा भी हमने उनको छेड़ा तो गुस्से में वो यह बोले, तुझे अठखेलियाँ सूझी हैं, हम बेज़ार बैठे हैं
-पौपुलर मेरठी
मुझमे रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा,  खुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है
ज़िंदगी तूने कब्र से कम दी है ज़मीन, पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
-बशीर बद्र


कितनी कंजूसी पे आमादा है ससुराल मेरी, रात की बात बताते हुए डर लगता है
ऐसे कमरे में सुला देते हैं साले मुझको , पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
-पौपुलर मेरठी

Wednesday, May 29, 2013

कभी तो आसमां से चाँद उतारे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक खूबसूरत शाम हो जाए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
ना जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
-बशीर बद्र


रहा करता है खटका की जाने क्या अंजाम हो जाए
खबर ये आम हो जाए तो कोहराम हो जाए
मुहब्बत हो गयी है डाकू सुल्ताना की बेटी से,
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए
-पौपुलर मेरठी
कह दो हसरतों से कहीं और जा बसे, इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में,
उम्र-ए-दराज़ से मांग कर लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गए दो  इंतज़ार में
-बहादुर शाह ज़फ़र


महबूब वादा कर के भी आया न दोस्तों, क्या क्या किया न हम ने यहाँ उसके प्यार में
मुर्गे चुरा के लाये थे चार 'पौपुलर' , दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में
-पौपुलर मेरठी