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Thursday, September 2, 2021

तुम्हें इश्क़ जब सूफ़ियाना लगेगा

तुम्हें इश्क़ जब सूफ़ियाना लगेगा
हरिक शख़्स फिर आशिकाना लगेगा।

ये सांसें हैं जब तक ही दुश्वारियां हैं
सफ़र उसके आगे सुहाना लगेगा।

मयस्सर हूँ मैं मुस्कुराता हुआ पर
मुझे इक हँसी का बयाना लगेगा।

(मयस्सर = उपलब्ध)

कभी इससे बाहर निकल के तो देखो
तुम्हें जिस्म इक क़ैदख़ाना लगेगा।

निसाबों में होंगीं जहां नफ़रतें हीं
वहीं ज़हर का कारख़ाना लगेगा।

(निसाब = पाठ्यक्रम)

तलाशेंगे पहले वो कांधा हमारा
कहीं जा के तब फिर निशाना लगेगा।

ख़ुद अपना गुनाहगार हूँ मैं सो मुझको
तसल्ली किसी की, न शाना लगेगा।

(शाना = कंधा)

- विकास वाहिद

Sunday, July 18, 2021

निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले 
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा 
-वहशत रज़ा अली कलकत्वी

(निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ = प्रियतम की मंज़िल का पता), (ज़ौक़-ए-जुस्तुजू = खोज/ तलाश का आनंद)

Sunday, May 30, 2021

दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना

दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना 
गर उस से मोहब्बत है तो, इज़हार करो ना 

(दीवार-ए-तकल्लुफ़ = औपचारिकता की दीवार), (मिस्मार = तोड़ना)

मुमकिन है तुम्हारे लिए, हो जाऊँ मैं आसाँ 
तुम ख़ुद को मिरे वास्ते, दुश्वार करो ना 

(दुश्वार = मुश्किल)

गर याद करोगे तो, चला आऊँगा इक दिन 
तुम दिल की गुज़रगाह को, हमवार करो ना 

(गुज़रगाह = रास्ता, सड़क), (हमवार = समतल)

कहना है अगर कुछ तो, पस-ओ-पेश करो मत 
खुल के कभी जज़्बात का, इज़हार करो ना 

(पस-ओ-पेश = संकोच, हिचकिचाहट)

हर रिश्ता-ए-जाँ तोड़ के, आया हूँ यहाँ तक 
तुम भी मिरी ख़ातिर कोई, ईसार करो ना 

(रिश्ता-ए-जाँ = जीवन का रिश्ता), (ईसार = त्याग करना) 

"एजाज़" तुम्हारे लिए, साहिल पे खड़ा हूँ 
दरिया-ए-वफ़ा मेरे लिए, पार करो ना

(साहिल=किनारा)

-एजाज़ असद

Saturday, January 30, 2021

हाइकू की एक क़िस्म माहिया

बाग़ों में पड़े झूले
तुम भूल गए हम को
हम तुम को नहीं भूले
-चराग़ हसन "हसरत"

पीपल इक आँगन में
ये कौन सुलगता है
तेरे प्यार के सावन में

भरपूर जवानी है
क्यों नींद नहीं आती
ये और कहानी है
-दिलनवाज़ "दिल"

बादल कभी होते हम
गोरी तेरी गलिओं पर
दिल खोलके रोते हम

दरिया से उड़े बगले
अब उसकी मुहब्बत में
वो बात नहीं पगले
-अली मुहम्मद "फ़रशी"

दरियाओं का पानी है
तुझपे फ़िदा कर दूँ
जाँ यूँ भी तो जानी है

खिली रात की रानी है
चले भी आओ सजना
रात बड़ी सुहानी है
-ताहिर

तेरा दर्द छुपा लूँगी
जब याद तू आए गा
मैं माहिया गा लूँगी
-क़तील शिफ़ाई

दिल ले के दग़ा देंगे
यार हैं मतलब के
ये देंगे भी तो क्या देंगे
-साहिर लुधियानवी

इक बार तो मिल साजन
आ कर देख ज़रा
टूटा हुआ दिल साजन
-हिम्मत राय शर्मा

Saturday, January 9, 2021

जीवन चक्र

स्नेह मिला जो आपका, हुआ मैं भाव विभोर,
खुशियाँ  कत्थक  नाचतीं  मेरे चारों ओर ।

स्मृतियों में आबद्ध हैं चित्र वो शेष, विशेष,
एक नजर में घूँम लें, 'पूरन' भारत देश ।

खेलें, खायें प्रेम से मिलजुल सबके संग,
जीवन का परखा हुआ यही है  सुंदर ढंग ।

वक़्त फिसलता ही रहा ज्यों मुट्ठी में रेत,
समय बिता कर आ गए वापस अपने खेत ।

भवसागर  हम  खे  रहे  अपनी अपनी नाव,
ना जाने किस नाव पर लगे भँवर का दाँव ! 

किसको,कितना खेलना सब कुछ विधि के हाथ,
खेल खतम और चल दिये लेकर स्मृतियाँ साथ !

-पूरन भट्ट 




Thursday, November 12, 2020

हर ख़ौफ़, हर ख़तर से, गुज़रना भी सीखिए

हर ख़ौफ़, हर ख़तर से, गुज़रना भी सीखिए 
जीना है गर अज़ीज़ तो, मरना भी सीखिए 

ये क्या कि डूब कर ही मिले, साहिल-ए-नजात 
सैलाब-ए-ख़ूँ से पार, उतरना भी सीखिए 

(साहिल-ए-नजात = मुक्ति का किनारा), (सैलाब-ए-ख़ूँ = ख़ून की बाढ़)

ऐसा न हो कि ख़्वाब ही, रह जाए ज़िंदगी 
जो दिल में ठानिए उसे, करना भी सीखिए 

होता है पस्तियों के, मुक़द्दर में भी उरूज 
इक मौज-ए-तह-नशीं का, उभरना भी सीखिए 

(पस्तियों = निम्न-स्तर), (उरूज = बुलंदी, तरक्की, उत्कर्ष, उन्नति, ऊँचाई, उत्थान), (मौज-ए-तह-नशीं = तह के नीचे की लहर)

औरों की सर्द-मेहरी का, शिकवा बजा "सहर" 
ख़ुद अपने दिल को प्यार से, भरना भी सीखिए 

(सर्द-मेहरी = निर्दयता), (बजा = ठीक)

- अबु मोहम्मद "सहर"



Monday, October 12, 2020

रस्ता चाहे जैसा दे

रस्ता चाहे जैसा दे
साथी लेकिन अच्छा दे

प्यार पे हँसने वालों को   
प्यार में उलझा दे

जिसमें सदियां जी लूं मैं
इक लम्हा तो ऐसा दे 

जैसा हूं वैसा ही दिखूं  
सीरत जैसा चेहरा दे 

चाहे जितने दे लेकिन  
दर्द कोई तो मीठा दे  

थोड़े दुनियादार रहें
हस्ती जी को समझा दे

-हस्तीमल हस्ती 

Tuesday, May 26, 2020

हाथ रख कर जो वो पूछे दिल-ए-बेताब का हाल
हो भी आराम तो कह दूँ मुझे आराम नहीं
- दाग़ देहलवी

Monday, May 11, 2020

आये ज़ुबाँ पे राज़-ए-मोहब्बत मुहाल है

आये ज़ुबाँ पे राज़-ए-मोहब्बत मुहाल है
तुमसे मुझे अजीज़ तुम्हारा ख़याल है

दिल था तेरे ख़्याल से पहले चमन चमन
अब भी रविश रविश है मगर पायमाल है

(रविश = बाग़ की क्यारियों के बीच का छोटा मार्ग, गति, रंग-ढंग), (पायमाल = कुचला हुआ, दुर्दशाग्रस्त)

कम्बख़्त इस जूनून-ए-मोहब्बत को क्या करूँ
मेरा ख़याल है न तुम्हारा ख़याल है

-जिगर मुरादाबादी 

Friday, May 8, 2020

अदावत पे लिखना न नफ़रत पे लिखना

अदावत पे लिखना न नफ़रत पे लिखना
जो लिखना कभी तो मुहब्बत पे लिखना।

है ग़ाफ़िल बहुत ही यतीमों से दुनिया
लिखो तुम तो उनकी अज़ीयत पे लिखना।

(ग़ाफ़िल = बेसुध, बेख़बर), (अज़ीयत = पीड़ा, अत्याचार, व्यथा, यातना, कष्ट, तक़लीफ़)

चले जब हवा नफ़रतों की वतन में
ज़रूरी बहुत है मुहब्बत पे लिखना।

हसीनों पे लिखना अगर हो ज़रूरी
तो सूरत नहीं उनकी सीरत पे लिखना।

अगर बात निकले लिखो अपने घर पे
इबादत बराबर है जन्नत पे लिखना।

सितम कौन समझा है इसके कभी भी
है मुश्किल ज़माने की फितरत पे लिखना।

अगर मुझपे लिखना पड़े बाद मेरे
तो चाहत पे लिखना अक़ीदत पे लिखना।

(अक़ीदत = श्रद्धा, आस्था, विश्वास)

-विकास वाहिद

Thursday, April 30, 2020

वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है

वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों रिवाजों से बग़ावत है तो है

सच को मैं ने सच कहा जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाक़त है तो है

कब कहा मैं ने कि वो मिल जाए मुझ को मैं उसे
ग़ैर ना हो जाए वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना गर तो क्या ख़ता है शम्अ' की
रात भर जलना जलाना उस की क़िस्मत है तो है

दोस्त बिन कर दुश्मनों सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हर दम ज़मीन-ओ-आसमाँ
दूरियों के बा'द भी दोनों में क़ुर्बत है तो है

(क़ुर्बत = नज़दीकी)

-दीप्ति मिश्रा

Tuesday, April 28, 2020

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात

(दरख़्शाँ = चमकता हुआ, चमकीला), (हयात = जीवन)

तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है

(ग़म-ए-दहर =दुनिया के दुःख), (आलम = जगत, संसार, दुनिया, अवस्था, दशा, हालत), (सबात = स्थिरता, स्थायित्व, मज़बूती)

तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

(निगूँ  = नीचे होना, झुकना), (वस्ल = मिलन)

अन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए

(तारीक = अंधकारमय), (बहीमाना = वहशियाना), (तिलिस्म = जादू, माया, इंद्रजाल), (अतलस = रेशमी वस्त्र),  (कमख़ाब = महँगा कपड़ा), (जा-ब-जा = जगह जगह), (कूचा-ओ-बाज़ार = गली और बाज़ार)

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे

(अमराज़ = बहुत से रोग), (तन्नूर = Oven), (नासूर = घाव)

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

https://www.youtube.com/watch?v=B6SSbjcGWOg


मुझ को ख़ुद तक जाना था

मुझ को ख़ुद तक जाना था
इश्क़ तो एक बहाना था

रब तक आना जाना था
सच से जब याराना था

हम न समझ पाए वरना
दुःख भी एक तराना था

हाय वहाँ भी बच निकले
हमको जहाँ दिख जाना था

पँख बिना भी उड़ते थे
वो भी एक ज़माना था

-हस्तीमल 'हस्ती'

Thursday, April 23, 2020

याद में उसकी भीगा कर

याद में उसकी भीगा कर
फूलों जैसा महका कर

भीड़ में ख़ुद को तन्हा कर
ये मंज़र भी देखा कर

बूढ़ों में भी बैठा कर
बच्चों से भी खेला कर

सबको राह दिखा लेकिन
अपनी राह भी देखा कर

किससे भूल नहीं होती
इतना भी मत सोचा कर

तू भी दौलत से भर जा
सबके ग़म को अपनाकर

जन्नत किसने देखी है
जीवन जन्नत जैसा कर

प्यार की अपनी आँखें हैं
देख ही लेगा देखा कर


-हस्तीमल हस्ती

Thursday, April 16, 2020

बतर्ज-ए-मीर

अक्सर ही उपदेश करे है, जाने क्या - क्या बोले है।
पहले ’अमित’ को देखा होता अब तो बहुत मुँह खोले है।

वो बेफ़िक्री, वो अलमस्ती, गुजरे दिन के किस्से हैं,
बाजारों की रक़्क़ासा, अब सबकी जेब टटोले है।

(रक़्क़ासा = नर्तकी)

जम्हूरी निज़ाम दुनियाँ में इन्क़िलाब लाया लेकिन,
ये डाकू को और फ़कीर को एक तराजू तोले है।

(जम्हू री निज़ाम= गणतंत्र, जनतंत्र, प्रजातंत्र)

उसका मकतब, उसका ईमाँ, उसका मज़हब कोई नहीं,
जो भी प्रेम की भाषा बोले, साथ उसी के हो ले है।

(मकतब = पाठशाला, स्कूल)

बियाबान सी लगती दुनिया हर रौनक काग़ज़ का फूल
कोलाहल की इस नगरी में चैन कहाँ जो सो ले है

-अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’

Monday, March 30, 2020

ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नाँ

ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नाँ
मुझे मुसलसल देख रहे हो तुम भी नाँ

(मुसलसल = लगातार)

दे जाते हो मुझ को कितने रंग नए
जैसे पहली बार मिले हो तुम भी नाँ

हर मंज़र में अब हम दोनों होते हैं
मुझ में ऐसे आन बसे हो तुम भी नाँ

(मंज़र = दृश्य)

इश्क़ ने यूँ दोनों को आमेज़ किया
अब तो तुम भी कह देते हो तुम भी नाँ

(आमेज़ = मिलने वाला, मिलाने वाला)

ख़ुद ही कहो अब कैसे सँवर सकती हूँ मैं
आईने में तुम होते हो तुम भी नाँ

बन के हँसी होंटों पर भी रहते हो
अश्कों में भी तुम बहते हो तुम भी नाँ

मेरी बंद आँखें तुम पढ़ लेते हो
मुझ को इतना जान चुके हो तुम भी नाँ

माँग रहे हो रुख़्सत और ख़ुद ही
हाथ में हाथ लिए बैठे हो तुम भी नाँ

-अंबरीन हसीब अंबर






Tuesday, January 21, 2020

जो ज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीक़त से डर गए

जो ज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीक़त से डर गए
वो लोग अपनी मौत से पहले ही मर गए

आई कुछ ऐसी याद तेरी पिछली रात को
दामन पे बे-शुमार सितारे बिखर गए

छोड़ आए ज़िंदगी के लिए नक़्श-ए-जावेदाँ
दीवाने मुस्कुरा कर जिधर से गुज़र गए

(नक़्श-ए-जावेदाँ = ना मिटने वाला चिन्ह)

मेरी निगाह-ए-शौक़ के उठने की देर थी
यूँ मुस्कुराए वोह के मनाज़िर संवर गए

(मनाज़िर = दृष्यों, मंज़र का बहुवचन)

दुनिया में अब ख़ुलूस है बस मस्लहत का नाम
बे-लौस दोस्ती के ज़माने गुज़र गए

(ख़ुलूस = प्रेम, मुहब्बत), (मस्लहत = भला बुरा देख कर काम करना), (बे-लौस = बिना किसी स्वार्थ के)

-आरिफ़ अख़्तर

दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है

दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है
हर अँधेरे में दिया ख़्वाब का जल सकता है

इश्क़ वो आग जो बरसों में सुलगती है कभी
दिल वो पत्थर जो किसी आन पिघल सकता है

(आन = क्षण, पल)

हर निराशा है लिए हाथ में आशा बंधन
कौन जंजाल से दुनिया के निकल सकता है

जिस ने साजन के लिए अपने नगर को छोड़ा
सर उठा कर वो किसी शहर में चल सकता है

मेरा महबूब है वो शख़्स जो चाहे तो 'नईम'
सूखी डाली को भी गुलशन में बदल सकता है

-हसन नईम

Thursday, October 24, 2019

ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही

ओ कल्प-वृक्ष की सोन-जूही, ओ अमलतास की अमर कली,
धरती के आताप से जलते मन पर छायी निर्मल बदली,
मैं तुमको मधु-सद-गंध युक्त, संसार नहीं दे पाउँगा,
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा.

तुम कल्प-वृक्ष का फूल और मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य, मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी ग़ज़ल शुभे, तुम शाम गान सी पावन हो,
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी, बिजुरी सी तुम मन भावन हो

इसलिए व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाउँगा
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा

तुम जिस शैया पर शयन करो, वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौल-श्री, वह आँगन क्या वृन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ, वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो, वह व्यक्ति नहीं वंशी-वट हो

पर मैं वट जैसा सघन छॉंह, विस्तार नहीं दे पाउँगा,
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा.

मैं तुमको चाँद सितारों का सौंपू उपहार भला कैसे,
मैं यायावर बंजारा साधू, दूं सुर श्रंगार भला कैसे
मैं जीवन के प्रश्नो से नाता तोड़ तुम्हारे साथ शुभे,
बारूदी बिछी धरती पर कर लूं दो पल प्यार भला कैसे

इसलिए विवश हर आंसू को सत्कार नहीं दे पाउँगा,
तुम मुझको करना माफ़ प्रिये, मैं प्यार नहीं दे पाउँगा.

- डॉ. कुमार विश्वास

Thursday, September 26, 2019

हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
-दाग़ देहलवी