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Wednesday, April 1, 2020

इस नाज़ इस अंदाज़ से तुम हाए चलो हो

इस नाज़ इस अंदाज़ से तुम हाए चलो हो
रोज़ एक ग़ज़ल हम से कहलवाए चलो हो

रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव
चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो

दीवाना-ए-गुल क़ैदी-ए-ज़ंजीर हैं और तुम
क्या ठाट से गुलशन की हवा खाए चलो हो

(दीवाना-ए-गुल = फूलों का दीवाना)

मय में कोई ख़ामी है न साग़र में कोई खोट
पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो

हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता
तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो

ज़ुल्फ़ों की तो फ़ितरत ही है लेकिन मिरे प्यारे
ज़ुल्फ़ों से ज़ियादा तुम्हीं बल खाए चलो हो

वो शोख़ सितमगर तो सितम ढाए चले है
तुम हो कि 'कलीम' अपनी ग़ज़ल गाए चलो हो

-कलीम आजिज़

Friday, December 16, 2016

यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे

यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे

(मौज-ए-सबा = पुरवाई का झोंका)

लोग यूँ देख के हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे

इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूँ न मिल हम से ख़ुदा हो जैसे

(शिर्क = किसी और को ईश्वर/ ख़ुदा के समान मानना)

मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे एहसान किया हो जैसे

ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे

हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे

ज़िंदगी बीत रही है 'दानिश'
एक बे-जुर्म सज़ा हो जैसे

-एहसान दानिश



Monday, November 7, 2016

ज़ुल्म-ओ-सितम से तंग जो आएँ तो क्या करें

ज़ुल्म-ओ-सितम से तंग जो आएँ तो क्या करें
सर दर पे उन के गर न झुकाएँ तो क्या करें

ख़ारों को भी नमी ही की हाजत है जब तो फिर
सहरा-ए-दिल न रो के भिगाएँ तो क्या करें

(हाजत = इच्छा, अभिलाषा, ख़्वाहिश)

अपनी तरफ़ से हमने परस्तिश तो ख़ूब की
इस पर भी वो नज़र से गिराएँ तो क्या करें

(परस्तिश = पूजा, आराधना)

हंस हंस के कर रहे हैं तमन्ना का ख़ून हम
यूँ रंग ज़िन्दगी में न लाएँ तो क्या करें

दम घोटती हैं बारहा तन्हाइयां मेरी
ख़ल्वत इसे न कह के छिपाएँ तो क्या करें

(बारहा = कई बार, अक्सर), (ख़ल्वत = एकांत, तन्हाई)

बन के तबीब आये मेरी ज़िन्दगी में जो
वो हाथ नब्ज़ को न लगाएँ तो क्या करें

 (तबीब = उपचारक, चिकित्सक)

नाज़-ओ-नियाज़ क्या, नहीं होता कलाम तक
हम ज़ार ज़ार रो भी न पाएँ तो क्या करें

(नाज़-ओ-नियाज़ = प्रेमी-प्रेमिका की आतंरिक चेष्ठाएँ, हाव-भाव, शोख़ियाँ)

-स्मृति रॉय

Zulm-o-sitam se tang jo aayeN to kya kareN
Sar dar pe unke gar na jhukayeN to kya kareN

KharoN ko bhi nami ki hi haajat hai jab to phir
Sahara-e-dil na ro ke bhigayeN to kya kareN

Apni taraf se hamne parstish to khoob ki
Is par bhi wo nazar se girayeN to kya kareN

Hans hans ke kar raheN haiN tamnna ka khoon ham
YuN rang zindgii meiN na layeN to kya kareN

Dam ghotii haiN barhaa tanhaeeyaN meri
Khalwat ise na kah ke chhipayeN to kya kareN

Ban ke tabeeb aaye merii zindgii meiN jo
Wo haath nabz ko na lagayeN to kya kareN

Naaz-o-niyaaz kya, nahiN hota kalaam tak
Ham zaar zaar ro bhi na paayeN to kya kareN

-Smriti Roy 

Monday, October 10, 2016

अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
भूल सकते नहीं ये अहल-ए-नज़र
ख़ूब हँसता हूँ मुस्कुराता हूँ
दोस्तों की सितम-ज़रीफ़ी पर
-महेश चंद्र नक़्श

(अहल-ए-नज़र = दृष्टि वाले, People with vision), (सितम-ज़रीफ़ी = हँसी की ओट में अत्याचार करना)

Monday, October 20, 2014

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
वो हुस्न जिसकी तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ

 (दीद= दर्शन, दीदार), (मसर्रतें = ख़ुशियाँ), (पिन्हाँ = आंतरिक, छिपा हुआ)

हज़ार फ़ित्ने, तहे-पा-ए-नाज़ ख़ाकनशीं
हर एक निगाह ख़ुमारे-शबाब से रंगीं

(फ़ित्ने = उपद्रव), (तहे-पा-ए-नाज़ = सुंदरता/नाज़ो-अदा/ मान-अभिमान के पैर के नीचे), (ख़ाकनशीं = दीन, दुखी, लाचार), (ख़ुमारे-शबाब = यौवन-मद)

शबाब, जिससे तख़य्युल पे बिजलियाँ बरसें
वक़ार जिसकी रफ़ाक़त को शोख़ियाँ तरसें

(तख़य्युल = कल्पना), (वक़ार = गरिमा, प्रतिष्ठा, सम्मान, मान-मर्यादा), (रफ़ाक़त = मैत्री, दोस्ती, संगत, साथ)

अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़े-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां

(अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा = पैरों के डगमगाने की अदा), (बयाज़े-रुख़ = चेहरे का गोरा रंग), (सहर = सुबह), (सबाहतें = सफ़ेदी, रौशनी, सुंदरता)

सियाह ज़ुल्फ़ों में वारफ़्ता नकहतों का हुजूम
तवील रातों की ख़्वाबीदा राहतों का हुजूम

(सियाह = काली), (वारफ़्ता = खोया हुआ, आत्मविस्मृत, बेसुध, बेख़ुद), (नकहतों = सुगंध, ख़ुशबू), (हुजूम = जान-समूह, भीड़-भाड़)

 (तवील = लम्बी), (ख़्वाबीदा =सोई हुई, सुप्त)

वो आँख जिसके बनाव पे ख़ालिक इतराये
ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये

(ख़ालिक = सृष्टा)

वो होंठ, फ़ैज़ से जिनके, बहारे-लालःफरोश
बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील ब-दोश

(फ़ैज़ = दानशीलता), (बहारे-लालःफरोश = लाल फूल बेचने वाली बहारें), (बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील = जन्नत और उसकी नहरें), (ब-दोश = कंधे पर लिए हुए)

गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे
दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही नमाज़ करे

(गुदाज़ = मृदुल, मांसल), (क़बा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा), (दराज़ = लंबा), (सर्वे-सही = सर्व के सीधे पेड़)

ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम नहीं
वो हुस्न जिसका तस्सवुर बशर का काम नहीं

(मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम = परिचय या नाम का मुहताज), (तस्सवुर = कल्पना, ख़याल), (बशर = मनुष्य, इंसान)

किसी ज़माने में इस रहगुज़र से गुज़रा था
ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल इधर से गुज़रा था

(ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल = सैकड़ों अभिमान और सौंदर्य/ हुस्न लेकर)

और अब ये राहगुज़र भी है दिलफ़रेब-ओ-हसीं
है इसकी ख़ाक मे कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र मकीं

(कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र = मदिरा और कविता की मादकता), (मकीं = बसा हुआ)

हवा मे शोख़ी-ए-रफ़्तार की अदाएँ हैं
फ़ज़ा मे नर्मी-ए-गुफ़्तार की सदाएँ हैं

(शोख़ी-ए-रफ़्तार = चाल की चंचलता), (नर्मी-ए-गुफ़्तार = वाणी की कोमलता), (सदाएँ = आवाज़ें)

गरज़ वो हुस्न अब इस राह का ज़ुज़्वे-मंज़र है
नियाज़-ए-इश्क़ को इक सज्दागाह मयस्सर है

(ज़ुज़्वे-मंज़र = दृश्य का अंश), (नियाज़-ए-इश्क़ = प्रेम की कामना)

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


आबिदा परवीन/ Abida Parveen



Tuesday, May 7, 2013

हर एक को ये दावा है कि हम भी हैं कोई चीज़,
और हमको ये नाज़ कि हम कुछ भी नहीं हैं ।
-अकबर इलाहाबादी

Saturday, February 23, 2013

जब मैंने उसे खास-निगाहे-नाज़ से देखा,
आईना फिर उसने नए अंदाज़ से देखा ।
-नवाज़ देवबंदी

Wednesday, October 24, 2012

ज़िन्दगी किसी हसीना से कम नहीं,
प्यार है इससे गर तो नाज़ उठाते रहिये

-शायर: नामालूम

Friday, October 12, 2012

अजब तरकीब से साने ने रख्खी है बिना इस की
कि सदिया हो गयी इक ईंट भी इसकी नहीं खिसकी

[(साने=बनाने वाला, creator); (बिना=आधार, नीव)

लगी रहती है आमद-रफ़्त जिसमें रोज़ जिस-तिस की
वही रौनक है जिसकी और वही दिलचस्पियाँ जिसकी

यह दुनिया या इलाही! जल्वा गाह-ए-नाज़ है किस की
हज़ारो उठ गये, रौनक़ वही है आज तक इस की

-"नादिर" काकोरवी
खूबिए-नाज तो देखो कि उसी ने न सुना,
जिसने अफ़साना बनाया मेरे आफ़साने को।
-असर लखनवी