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Saturday, December 18, 2021

ज़िन्दगी की तलाश जारी है

ज़िन्दगी की तलाश जारी है
इक ख़ुशी की तलाश जारी है।

हर तरफ़ ज़ुल्मतों के मौसम में
रौशनी की तलाश जारी है।

(ज़ुल्मत = अंधेरा)

इस उदासी के ढेर के नीचे
इक हँसी की तलाश जारी है।

जो बचा ले सज़ा से हाक़िम को
उस गली की तलाश जारी है।

(हाक़िम  = न्यायाधिश, जज, स्वामी, मालिक, राजा, हुक्म करने वाला)

जो परख ले हमें यहां ऐसे
जौहरी की तलाश जारी है।

खो गया है कहीं कोई मुझमें
बस उसी की तलाश जारी है।

मिल गए हैं ख़ुदा कई लेकिन
आदमी की तलाश जारी है।

- विकास जोशी "वाहिद"  १३/१२/१९

Thursday, September 2, 2021

तुम्हें इश्क़ जब सूफ़ियाना लगेगा

तुम्हें इश्क़ जब सूफ़ियाना लगेगा
हरिक शख़्स फिर आशिकाना लगेगा।

ये सांसें हैं जब तक ही दुश्वारियां हैं
सफ़र उसके आगे सुहाना लगेगा।

मयस्सर हूँ मैं मुस्कुराता हुआ पर
मुझे इक हँसी का बयाना लगेगा।

(मयस्सर = उपलब्ध)

कभी इससे बाहर निकल के तो देखो
तुम्हें जिस्म इक क़ैदख़ाना लगेगा।

निसाबों में होंगीं जहां नफ़रतें हीं
वहीं ज़हर का कारख़ाना लगेगा।

(निसाब = पाठ्यक्रम)

तलाशेंगे पहले वो कांधा हमारा
कहीं जा के तब फिर निशाना लगेगा।

ख़ुद अपना गुनाहगार हूँ मैं सो मुझको
तसल्ली किसी की, न शाना लगेगा।

(शाना = कंधा)

- विकास वाहिद

Tuesday, July 27, 2021

कर रहा हूँ यकीन सब पर मैं
ख़ुद पे इतना यकीन है मुझको।
- विकास " वाहिद"

Saturday, March 27, 2021

समंदर हो ज़मीं हो इसको दफ़नाया नहीं जाता।
मियां हरगिज़ कभी भी सच को झुठलाया नहीं जाता।।

अकेले ही पहुंचना है हमें उस आख़री मंज़िल
किसी का चाह कर भी साथ में साया नहीं जाता।

पहेली सा बुना है ज़िन्दगी ने हर हसीं रिश्ता
उलझ जाए सिरा कोई तो सुलझाया नहीं जाता।

हमारे ख़ून में शामिल है हरदम ये रविश "वाहिद"
पनाहों में कोई आए तो ठुकराया नहीं जाता।

(रविश =  गति, रंग-ढंग, बाग़ की क्यारियों के बीच का छोटा मार्ग)

- विकास वाहिद
26/03/21

Thursday, January 21, 2021

होंठों पर मुस्कान पढ़ा कर

होंठों पर मुस्कान पढ़ा कर
ग़म का तू उनवान पढ़ा कर।

(उनवान = शीर्षक)

फिर गीता क़ुरआन पढ़ा कर
पहले दिल नादान पढ़ा कर।

हर्फ़ बड़े मुश्किल फ़ितरत के
चेहरा है आसान पढ़ा कर।

(हर्फ़ = अक्षर), (फ़ितरत = स्वाभाव, प्रकृति)

ताज बचाना है गर तुझको
आंखों में तूफान पढ़ा कर।

हुक़्म उदूली कर दुनिया की
पर दिल का फ़रमान पढ़ा कर।

(हुक़्म उदूली = कहना न मानना), (फ़रमान = राजकीय आज्ञापत्र, आज्ञा, आदेश, हुक्म  )

हाथ मेरा ऐ पढ़ने वाले
आंखें हैं पहचान पढ़ा कर।

आसां होगी फिर हर मुश्किल
मुश्किल को आसान पढ़ा कर।

कृष्ण नज़र आएंगे तुझको
मीरा और रसखान पढ़ा कर।

आ जाएगा ग़ज़लें कहना
ग़ालिब का दीवान पढ़ा कर।

- विकास वाहिद 

Thursday, November 19, 2020

इसके ज़्यादा उसके कम

इसके ज़्यादा उसके कम
सबके अपने अपने ग़म।

ज़ख़्म उसी ने बख़्शे हैं
जिसको बख़्शा था मरहम।

जो लिक्खा है वो होगा
पन्ना पहनो या नीलम।

हाय, तबस्सुम चेहरे पर
फूल पे हो जैसे शबनम।

(तबस्सुम =  मुस्कराहट), (शबनम = ओस)

साँसों तक का झगड़ा फिर
कैसी ख़ुशियाँ, क्या मातम।

सुब्ह तलक जो जलना था
रक्खी अपनी लौ मद्धम।

आँखें कितनी पागल हैं
अक्सर बरसीं बे-मौसम।

इक मौसम में बारिश के
यादों के कितने मौसम।

ख़्वाहिश अब तक ज़िंदा है
जिस्म पड़ा है पर बेदम।

- विकास वाहिद

Sunday, October 25, 2020

बात बिगड़ी हुई बनाने में

बात बिगड़ी हुई बनाने में
रो पड़े हम उसे हंसाने में।

ज़िन्दगी जी कहाँ किसी ने भी
लोग मसरूफ़ थे ज़माने में।

तेरी तस्वीर ही नहीं थी बस
और सब था शराबख़ाने में।

तुम को ग़म है या दर्द है कोई
क्या है तकलीफ़ मुस्कुराने में।

ये तअल्लुक़ भी कांच जैसे हैं
टूट जाते हैं बस निभाने में।

शख़्स वो जो क़रीब था मेरे
हो गया दूर आज़माने में।

सीढ़ियां तो मिली नहीं हमको
सांप ही थे हरेक ख़ाने में।

बेच आए हैं वो अना शायद
अपनी दस्तार को बचाने में।

(अना = आत्मसम्मान), (दस्तार = पगड़ी)

उसको तो चार दिन लगे थे बस
हमको अरसा लगा भुलाने में।

अब तो "वाहिद" गुरेज़ है उसको
हमको आवाज़ भी लगाने में।

(गुरेज़ = उपेक्षा, बचना)

- विकास "वाहिद"

Friday, July 31, 2020

कुछ मरासिम तो निभाया कीजिए

कुछ मरासिम तो निभाया कीजिए
कम से कम ख़्वाबों में आया कीजिए।

(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार, संबंध)

चाहिए सबको यहां खुशरंग शै
कर्ब चेहरे पे न लाया कीजिए।

(कर्ब = पीड़ा, दर्द, दुःख, बेचैनी)

जिसके दर से चल रहा है ये जहां
उसके दर पे सर झुकाया कीजिए।

ज़िन्दगी है चार दिन का इक सफ़र
इसको नफ़रत में न ज़ाया कीजिए।

(ज़ाया = बर्बाद,नष्ट)

उम्र भर को घर बना लेती है फिर
बात दिल से मत लगाया कीजिए।

उसके दर पे रोज़ जा के बैठिए
रोज़ क़िस्मत आज़माया कीजिए।

दिन की सारी फ़िक्र बाहर छोड़ कर
हंसता चेहरा घर पे लाया कीजिए।

- विकास वाहिद
25/7/20

Friday, May 8, 2020

अदावत पे लिखना न नफ़रत पे लिखना

अदावत पे लिखना न नफ़रत पे लिखना
जो लिखना कभी तो मुहब्बत पे लिखना।

है ग़ाफ़िल बहुत ही यतीमों से दुनिया
लिखो तुम तो उनकी अज़ीयत पे लिखना।

(ग़ाफ़िल = बेसुध, बेख़बर), (अज़ीयत = पीड़ा, अत्याचार, व्यथा, यातना, कष्ट, तक़लीफ़)

चले जब हवा नफ़रतों की वतन में
ज़रूरी बहुत है मुहब्बत पे लिखना।

हसीनों पे लिखना अगर हो ज़रूरी
तो सूरत नहीं उनकी सीरत पे लिखना।

अगर बात निकले लिखो अपने घर पे
इबादत बराबर है जन्नत पे लिखना।

सितम कौन समझा है इसके कभी भी
है मुश्किल ज़माने की फितरत पे लिखना।

अगर मुझपे लिखना पड़े बाद मेरे
तो चाहत पे लिखना अक़ीदत पे लिखना।

(अक़ीदत = श्रद्धा, आस्था, विश्वास)

-विकास वाहिद

Saturday, December 7, 2019

पलकों पे बरसात सम्हाले बैठे हैं

पलकों पे बरसात सम्हाले बैठे हैं
हम अपने जज़्बात सम्हाले बैठे हैं।

ख़्वाबों में तेरे आने की ख़्वाहिश में
मुद्दत से इक रात सम्हाले बैठे हैं।

और हमें क्या काम बचा है फ़ुरक़त में
क़ुर्बत के लम्हात सम्हाले बैठे हैं।

(फ़ुरक़त = विरह), (क़ुर्बत = नज़दीकी)

हमको डर है बस तेरी रुसवाई का
इस ख़ातिर हर बात सम्हाले बैठे हैं।

(रुसवाई = बदनामी)

शहरों में ले आया हमको रिज़्क़ मगर
भीतर हम देहात सम्हाले बैठे हैं।

(रिज़्क़ = आजीविका)

बच्चों के उजले मुस्तक़बिल की ख़ातिर
हम मुश्किल हालात सम्हाले बैठे हैं।

(मुस्तक़बिल = भविष्य)

हमने तो बस एक ख़ुशी ही मांगी थी
अब ग़म की इफ़रात सम्हाले बैठे हैं।

(इफ़रात = अधिकता, प्रचुरता)

वादे, धोखे, आंसू,आहें और जफ़ा
तेरी सब सौग़ात सम्हाले बैठे हैं।

(जफ़ा =अत्याचार, अन्याय)

 - विकास वाहिद २/१२/२०१९

Friday, October 11, 2019

कीमती सब पैरहन भी देखिए

कीमती सब पैरहन भी देखिए
और फिर अपना क़फ़न भी देखिए।

(पैरहन = वस्त्र, कपड़े)

देख कर इस जिस्म को जी भर के फिर
हो सके तो अब ये मन भी देखिए।

डूबता सूरज भी है दिलकश मगर
भोर की पहली किरन भी देखिए।

पूछिये रिश्ता मेरा फिर नींद से
पहले बिस्तर की शिकन भी देखिए।

(शिकन = सलवटें)

देखिये लब पे हंसी लेकिन कभी
जिस्म में पसरी थकन भी देखिए।

उस तरफ़ ख़्वाहिश हज़ारों मुंतज़िर
इस तरफ़ दारो रसन भी देखिए।

(मुंतज़िर = प्रतीक्षारत), (दारो रसन = फांसी का फंदा)

- विकास "वाहिद"
०९/१०/२०१९

Friday, August 30, 2019

न हो मोड़ तो फिर कहानी है क्या

न हो मोड़ तो फिर कहानी है क्या
अगर आग ना हो जवानी है क्या

हंसी बेसबब सी लबों पे है क्यूं
कोई चोट दिल में पुरानी है क्या

कहीं जो मिली तो बताओगे क्या
रखी ज़िन्दगी की निशानी है क्या

यहां बात करने के हैं क़ायदे
बतानी है क्या औ छुपानी है क्या

अजब है सियासत का तर्जे बयां
कहा क्या गया है मआनी है क्या

तुम्हे क्या पता कामयाबी का रंग
कभी धूप में ख़ाक छानी है क्या

- विकास"वाहिद"
२९/०८/२०१९

Tuesday, August 27, 2019

कर मुहब्बत के इसमें बुरा कुछ नहीं

कर मुहब्बत के इसमें बुरा कुछ नहीं
जुर्म कर ले है इसकी सज़ा कुछ नहीं।

उम्र भर की वो बैठा है फ़िक्रें लिए
कल का जिस आदमी को पता कुछ नहीं।

क़द्र अश्क़ों की कीजे के मोती हैं ये
इनसे बढ़ कर जहां में गरां कुछ नहीं।

(गरां = महंगा / कीमती)

सानिहा अब ये है देख कर ज़ुल्म भी
इन रगों में मगर खौलता कुछ नहीं।

(सानिहा = दुर्भाग्य/ विडम्बना)

बोलते हो अगर सच तो ये सोच लो
आज के दौर में है जज़ा कुछ नहीं।

(जज़ा = ईनाम / reward)

ज़िन्दगी जैसे बोझिल हैं अख़बार भी
रोज़ पढ़ते हैं लेकिन नया कुछ नहीं।

मैं सज़ा में बराबर का हक़दार हूँ
ज़ुल्म देखा है लेकिन कहा कुछ नहीं।

जानते सब हैं सब छूटना है यहीं
जीते जी तो मगर छूटता कुछ नहीं।

ज़िन्दगी उस मकां पे है "वाहिद' के अब
हसरतें कुछ नहीं मुद्दआ कुछ नहीं।

(मुद्दआ = matter / issue)

- विकास "वाहिद" २३ अगस्त २०१९

Thursday, August 1, 2019

ढूंढता है ज़मीन में प्यारे

ढूंढता है ज़मीन में प्यारे
सांप हैं आस्तीन में प्यारे।

मैं न मंदिर में हूँ न मस्ज़िद में
मैं हूँ तेरे यक़ीन में प्यारे।

मैं मुहब्बत के लफ्ज़ में हूँ बस
हूँ वफ़ा में मैं दीन में प्यारे।

(दीन = पंथ, मत, धर्म)

उसकी आदत है मेरे ढूंढेगा
ऐब वो खुर्दबीन में प्यारे।

(खुर्दबीन = Microscope)

उसको मालूम है कि नाटक में
किसको मरना है सीन में प्यारे।

ज़िन्दगी कट रही है रफ़्ता रफ़्ता
वक़्त की इस मशीन में प्यारे।

(रफ़्ता रफ़्ता = धीरे धीरे)

- विकास वाहिद
३१/०७/२०१९


Saturday, July 20, 2019

भले मुख़्तसर है

भले मुख़्तसर है
सफ़र फिर सफ़र है।

(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)

जो हासिल नहीं है
उसी पर नज़र है।

यहां भीड़ में भी
अकेला बशर है।

(बशर = इंसान)

है कब लौट जाना
किसे ये ख़बर है।

ख़ता है अगर इश्क़
ख़ता दरगुज़र है।

(दरगुज़र = क्षमा योग्य)

तेरी मौत मंज़िल
वहीं तक सफ़र है।

- विकास"वाहिद"
१८/०७/२०१९

Wednesday, June 26, 2019

मुसलसल चोट खा कर देख ली है

मुसलसल चोट खा कर देख ली है
ये दुनिया आज़मा कर देख ली है।

(मुसलसल = लगातार)

कोई मुश्किल न कम होती है मय से
ये शै मुंह से लगा कर देख ली है।

(शै = वस्तु, पदार्थ, चीज़)

मिला किसको इलाज-ए-इश्क़ अब तक
यहाँ सब ने दवा कर देख ली है।

यक़ीं अपनों पे तुम करने चले हो
यूं हमने ये ख़ता कर देख ली है।

अधूरी सी अड़ी है ज़िद पे अब तक
तमन्ना बरगला कर देख ली है।

(बरगलाना = बहकाना, भटकाना, दिग्भ्रमित करना, गुमराह करना, फुसलाना)

दुआओं से तो घर चलता नहीं है
दुआ हमने कमा कर देख ली है।

- विकास "वाहिद"
२५ जून २०१९

Thursday, June 20, 2019

उससे जब भी मैंने बात बढ़ा कर देखी

उससे जब भी मैंने बात बढ़ा कर देखी है
अपने दिल की धड़कन हाथ लगा कर देखी है।

उसको मेरा चेहरा हर राज़ बता देता है
मैंने जब भी कोई बात छुपा कर देखी है।

यूं तो वो भी वाक़िफ़ है दिल के सूनेपन से
उसने मेरे दिल में रात बिता कर देखी है।

किस्मत से ज़्यादा ही मेरे हिस्से में आईं
खुशियों की मैंने सौग़ात लुटा कर देखी है।

- विकास वाहिद
१९ जून २०१९

Wednesday, June 19, 2019

सवाल कितने वबाल कितने

सवाल कितने वबाल कितने
हैं ज़िन्दगी में ये जाल कितने।

(वबाल = मुसीबत/ तकलीफ़)

ज़रा से रस्ते में ज़िन्दगी के
उरूज़ कितने ज़वाल कितने।

(उरूज़ = बुलंदी, ऊंचाई), (ज़वाल = अवनति, पतन)

सभी की क़िस्मत में हैं मुअय्यन
फ़िराक़ कितने विसाल कितने।

(मुअय्यन = तय/निश्चित), (फ़िराक़ = विरह, वियोग), (विसाल = मिलन)

जो तेरी फुरक़त में दिन गुज़ारे
थे ज़िन्दगी में मुहाल कितने।

(फुरक़त = विरह, वियोग), (मुहाल = कठिन)

चलो जो दुनिया में तो संभल के
क़दम क़दम पर हैं जाल कितने।

- विकास वाहिद

बस नफ़ा ही नफ़ा है ख़सारा नहीं

बस नफ़ा ही नफ़ा है ख़सारा नहीं
इश्क़ के खेल में कोई हारा नहीं।

(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)

दिल पे क़ायम है तेरी हुकूमत अभी
हमने यादों का परचम उतारा नहीं।

कौन उतरा है उस पार अब तक यहाँ
इश्क़ के इस भंवर में किनारा नहीं।

मुंतज़िर हम रहे कोई आवाज़ दे
हमको लेकिन किसी ने पुकारा नहीं।

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

फूल थे ख़ार समझे गए हम सदा
बागबां ने भी हमको दुलारा नहीं।

कौन रखता यूं आँखों में काजल मेरी
मैं किसी आँख का भी तो तारा नहीं।

फिर भले सर कटे सच की ख़ातिर तो क्या
पर मुकरना तो मुझको गवारा नहीं।

- विकास वाहिद
१८/०६/२०१९

Tuesday, June 4, 2019

जब चलो साथ क़ाफ़िला रखना

जब चलो साथ क़ाफ़िला रखना
पर सफ़र अपना तुम जुदा रखना।

क्या ख़बर हाथ फिर बढ़ा दे वो
सुलह का तुम भी रास्ता रखना।

बेवफ़ा है ख़ुशी मिले न मिले
यूं ग़मों से भी वास्ता रखना।

आंसुओं से वो टूट जाएगा
तुम तो होठों पे कहकहा रखना।

अपनी शर्तों पे ज़िन्दगी जीना
अपने बच्चों को ये सिखा रखना।

मुश्किलों में भी काम आएँगे
दोस्तों का अता पता रखना।

जब भी मिलना गले किसी से तो
एक झीना सा फ़ासला रखना।

उसके आने की आस पे 'वाहिद'
रोज़ दहलीज़ पे दिया रखना।

- विकास वाहिद
१५ मई २०१९