कुटिलता में नहीं कोई कमी भी
वो रखते हैं गजब की सादगी भी
वो रखते हैं गजब की सादगी भी
व्यथा की पंखुरी से छिल गया हूँ
डराती है मुझे अब सादगी भी
डराती है मुझे अब सादगी भी
कहीं मंदिर कहीं मस्जिद की बातें
यहाँ छल की भी भाषा मजहबी भी
यहाँ छल की भी भाषा मजहबी भी
अंधेरों में कहीं कुछ हौसला- सा
अगर होता तो होती जिंदगी भी
अगर होता तो होती जिंदगी भी
न दिल ही बैठता है बेबसी में
लगाती है गरीबी पालथी भी
लगाती है गरीबी पालथी भी
निराशाओं में है उम्मीद कायम
बुरे दिन की है अपनी रौशनी भी
बुरे दिन की है अपनी रौशनी भी
हमारी यातना का कद बढ़ा तो
दुखों में मिल गयी थोड़ी खुशी भी
-डॉ० विनय मिश्र
दुखों में मिल गयी थोड़ी खुशी भी
-डॉ० विनय मिश्र
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