Saturday, March 16, 2019

किसी और के हक़ की पाई न दे

किसी और के हक़ की पाई न दे
ख़ुदा हमको ऐसी कमाई न दे।

उसे बादशाही का फ़िर हक़ नहीं
जिसे सिसकियाँ ही सुनाई न दे।

निवाले मयस्सर हों सबके लिए
भले बस्तियां जगमगाई न दे।

(मयस्सर = उपलब्ध)

मिले हर परस्तिश को अपना ख़ुदा
यकीं को कभी जगहँसाई न दे।

(परस्तिश = बंदगी , पूजा)

मैं रखता नहीं घर में वो आईने
कमी मेरी जिसमें दिखाई न दे।

वो हो दोस्ती या मुहब्बत कहीं
दिलों में कभी बेवफ़ाई न दे।

जो कहना है अशआर ख़ुद ही कहें
ख़ुदाया मुझे ख़ुदसिताई न दे।

(ख़ुदसिताई = आत्म स्तुति)

अता कर मुझे ज़ब्त इतना ख़ुदा
विदा हो जो बेटी रुलाई न दे।

(ज़ब्त = सहन शक्ति)

- विकास "वाहिद"
०४-०३-२०१९

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