जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
आए हैं उस की सम्त से पत्थर कभी कभी
(सम्त = तरफ़, दिशा, ओर)
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी
याँ तिश्ना-कामियाँ तो मुक़द्दर हैं ज़ीस्त में
मिलती है हौसले के बराबर कभी कभी
(तिश्ना-कामियाँ = प्यास, दुर्भाग्य, बदक़िस्मती), (ज़ीस्त = जीवन)
आती है धार उन के करम से शुऊर में
दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी
(शुऊर = समझ, सलीका, चेतना)
मंज़िल की जुस्तुजू में जिसे छोड़ आए थे
आता है याद क्यूँ वही मंज़र कभी कभी
(जुस्तुजू = खोज, तलाश)
माना ये ज़िंदगी है फ़रेबों का सिलसिला
देखो किसी फ़रेब के जौहर कभी कभी
(जौहर = गुण, दक्षता)
यूँ तो नशात-ए-कार की सरशारियाँ मिलीं
अंजाम-ए-कार का भी रहा डर कभी कभी
(नशात-ए-कार = उन्मादपूर्ण, मग्न करने वाला, चित्ताकर्षक, अति आनंदित), (सरशारियाँ = परमानन्द)
दिल की जो बात थी वो रही दिल में ऐ 'सुरूर'
खोले हैं गरचे शौक़ के दफ़्तर कभी कभी
-आल-ए-अहमद सूरूर
आए हैं उस की सम्त से पत्थर कभी कभी
(सम्त = तरफ़, दिशा, ओर)
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी
याँ तिश्ना-कामियाँ तो मुक़द्दर हैं ज़ीस्त में
मिलती है हौसले के बराबर कभी कभी
(तिश्ना-कामियाँ = प्यास, दुर्भाग्य, बदक़िस्मती), (ज़ीस्त = जीवन)
आती है धार उन के करम से शुऊर में
दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी
(शुऊर = समझ, सलीका, चेतना)
मंज़िल की जुस्तुजू में जिसे छोड़ आए थे
आता है याद क्यूँ वही मंज़र कभी कभी
(जुस्तुजू = खोज, तलाश)
माना ये ज़िंदगी है फ़रेबों का सिलसिला
देखो किसी फ़रेब के जौहर कभी कभी
(जौहर = गुण, दक्षता)
यूँ तो नशात-ए-कार की सरशारियाँ मिलीं
अंजाम-ए-कार का भी रहा डर कभी कभी
(नशात-ए-कार = उन्मादपूर्ण, मग्न करने वाला, चित्ताकर्षक, अति आनंदित), (सरशारियाँ = परमानन्द)
दिल की जो बात थी वो रही दिल में ऐ 'सुरूर'
खोले हैं गरचे शौक़ के दफ़्तर कभी कभी
-आल-ए-अहमद सूरूर
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