Friday, May 17, 2019

जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी

जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
आए हैं उस की सम्त से पत्थर कभी कभी

(सम्त = तरफ़, दिशा, ओर)

हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी

याँ तिश्ना-कामियाँ तो मुक़द्दर हैं ज़ीस्त में
मिलती है हौसले के बराबर कभी कभी

(तिश्ना-कामियाँ = प्यास, दुर्भाग्य, बदक़िस्मती), (ज़ीस्त = जीवन)

आती है धार उन के करम से शुऊर में
दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी

(शुऊर = समझ, सलीका, चेतना)

मंज़िल की जुस्तुजू में जिसे छोड़ आए थे
आता है याद क्यूँ वही मंज़र कभी कभी

(जुस्तुजू = खोज, तलाश)

माना ये ज़िंदगी है फ़रेबों का सिलसिला
देखो किसी फ़रेब के जौहर कभी कभी

 (जौहर = गुण, दक्षता)

यूँ तो नशात-ए-कार की सरशारियाँ मिलीं
अंजाम-ए-कार का भी रहा डर कभी कभी

(नशात-ए-कार = उन्मादपूर्ण, मग्न करने वाला, चित्ताकर्षक, अति आनंदित), (सरशारियाँ = परमानन्द)

दिल की जो बात थी वो रही दिल में ऐ 'सुरूर'
खोले हैं गरचे शौक़ के दफ़्तर कभी कभी

-आल-ए-अहमद सूरूर

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