Monday, November 24, 2014

मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में

मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में 
कि सारे खोने के ग़म पाए हमने पाने में 

वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे 
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में 

जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा 
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में 

(मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

लतीफ़ था वो तख़य्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक 
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में 

(लतीफ़ = मज़ेदार), (तख़य्युल = कल्पना)

समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में

(सराब = मृगतृष्णा, मरीचिका)

झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा 
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में

(दरख़्त = पेड़)

-जावेद अख़्तर

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