सियाह-ख़ाना-ए-दिल पर नज़र भी करता है
मेरी ख़ताओं को वो दरगुज़र भी करता है
(सियाह-ख़ाना-ए-दिल = दिल का अँधेरा कोना), (दरगुज़र = अनदेखा)
परिंद ऊँची उड़ानों की धुन में रहता है
मगर ज़मीं की हदों में बसर भी करता है
तमाम उम्र के दरिया को मोड़ देता है
वो एक हर्फ़ जो दिल पर असर भी करता है
(हर्फ़ = अक्षर)
वो लोग जिन की ज़माना हँसी उड़ाता है
इक उम्र बाद उन्हें मो'तबर भी करता है
(मो'तबर = विश्वसनीय, भरोसेमंद)
जला के दश्त-ए-तलब में उम्मीद की शमएँ
अज़िय्यतों से हमें बे-ख़बर भी करता है
(दश्त-ए-तलब = इच्छाओं के रेगिस्तान), (अज़िय्यतों = यातनाओं, तकलीफ़ों)
-खलील तनवीर
मेरी ख़ताओं को वो दरगुज़र भी करता है
(सियाह-ख़ाना-ए-दिल = दिल का अँधेरा कोना), (दरगुज़र = अनदेखा)
परिंद ऊँची उड़ानों की धुन में रहता है
मगर ज़मीं की हदों में बसर भी करता है
तमाम उम्र के दरिया को मोड़ देता है
वो एक हर्फ़ जो दिल पर असर भी करता है
(हर्फ़ = अक्षर)
वो लोग जिन की ज़माना हँसी उड़ाता है
इक उम्र बाद उन्हें मो'तबर भी करता है
(मो'तबर = विश्वसनीय, भरोसेमंद)
जला के दश्त-ए-तलब में उम्मीद की शमएँ
अज़िय्यतों से हमें बे-ख़बर भी करता है
(दश्त-ए-तलब = इच्छाओं के रेगिस्तान), (अज़िय्यतों = यातनाओं, तकलीफ़ों)
-खलील तनवीर
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