Wednesday, January 23, 2019

बिखरे हैं सारे ख़्वाब और अरमान इधर-उधर

बिखरे हैं सारे ख़्वाब और अरमान इधर-उधर
ये कौन कर गया मेरा सामान इधर-उधर

खु़द में कहीं- कहीं ही नज़र आ रहा हूँ मैं
ह़ालात कर गए मिरी पहचान इधर-उधर

मिलता नहीं कहीं भी कोई हमनवा मुझे
दिल में छुपाए फिरता हूँ तूफ़ान इधर-उधर

ना-पैद होके रह गया दुनिया में अब सुकून
हर कोई फिर रहा है परेशान इधर-उधर

(ना-पैद = विनष्ट, अप्राप्य, जो अब पैदा न होता हो। जो इतना अप्राप्य या दुर्लभ हो कि मानों कहीं पैदा ही न होता हो)

सज्दागुज़ार हूँ मगर इस दिल का क्या करूँ
भटकाए जा रहा है मिरा ध्यान इधर-उधर

हम आईना नहीं थे सो बस में न रह सके
देखा उन्हें तो हो गया ईमान इधर-उधर

आँसू मिरे समेट के रक्खे न जा सके
होता चला गया मिरा दीवान इधर-उधर

- राजेश रेड्डी

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