Wednesday, June 12, 2013

सूरज का सफ़र ख़त्म हुआ रात न आयी
हिस्से में मेरे ख्वाबों की सौग़ात न आयी

मौसम ही पे हम करते रहे तब्सरा ता देर
दिल जिस से दुखे ऐसी कोई बात न आयी

यूं डोरे को हम वक़्त की पकड़े तो हुए थे
एक बार मगर छूटी तो फिर हाथ न आयी

हमराह कोई और न आया तो क्या गिला
परछाई भी जब मेरी मेरे साथ न आयी

हर सिम्त नज़र आती हैं बेफ़सल ज़मीन
इस साल भी शहर में बरसात न आयी
-शहरयार

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