Saturday, September 21, 2013

बाहर न आ सकी तू क़ैद-ए-ख़ुदी से अपनी
ऐ अक़्ल-ए-बेहक़ीक़त देखा शऊर तेरा

[(क़ैद-ए-ख़ुदी = अहंकार का बंधन), (अक़्ल-ए-बेहक़ीक़त = असलियत से दूर अक़्ल), (शऊर = काम करने की योग्यता या ढंग)]

-ख़्वाजा मीर 'दर्द'

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