Thursday, May 30, 2019

हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था

हसद की आग थी और दाग़ दाग़ सीना था
दिलों से धुल न सका वो ग़ुबार-ए-कीना था

(हसद = ईर्ष्या, जलन), (ग़ुबार-ए-कीना = )

ज़रा सी ठेस लगी थी कि चूर चूर हुआ
तिरे ख़याल का पैकर भी आबगीना था

(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख),  (आबगीना = पतले काँच की बड़े पेट की बोतल, जो शराब या गुलाब जल रखने के काम आती थी)

रवाँ थी कोई तलब सी लहू के दरिया में
कि मौज मौज भँवर उम्र का सफ़ीना था

(रवाँ  = बहता हुआ, प्रवाहमान), (सफ़ीना = नाव, किश्ती)

वो जानता था मगर फिर भी बे-ख़बर ही रहा
अजीब तौर था उस का अजब क़रीना था

(क़रीना = सलीका, ढंग, तमीज़)

बहुत क़रीब से गुज़रे मगर ख़बर न हुई
कि उजड़े शहर की दीवार में दफ़ीना था

(दफ़ीना = ज़मीन में गड़ा हुआ धन)

-खलील तनवीर

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