ग़म का कारोबार न छूटा
जीवन भर संसार न छूटा
हम भी गौतम हो सकते थे
पर हमसे घर-बार न छूटा
कौन है ऐसा जिसका जहाँ में
कोई कहीं उस पार न छूटा
अम्न की ख़्वाहिश थी सीने में
हाथ से पर हथियार न छूटा
छूट गया सब काम का लेकिन
जो कुछ था बेकार न छूटा
जो इक बार हुआ दरबारी
उससे फिर दरबार न छूटा
छोड़ दिया बाज़ार ने हमको
पर हमसे बाज़ार न छूटा
-राजेश रेड्डी
जीवन भर संसार न छूटा
हम भी गौतम हो सकते थे
पर हमसे घर-बार न छूटा
कौन है ऐसा जिसका जहाँ में
कोई कहीं उस पार न छूटा
अम्न की ख़्वाहिश थी सीने में
हाथ से पर हथियार न छूटा
छूट गया सब काम का लेकिन
जो कुछ था बेकार न छूटा
जो इक बार हुआ दरबारी
उससे फिर दरबार न छूटा
छोड़ दिया बाज़ार ने हमको
पर हमसे बाज़ार न छूटा
-राजेश रेड्डी
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