Monday, August 12, 2019

ग़म का कारोबार न छूटा

ग़म का कारोबार न छूटा
जीवन भर संसार न छूटा

हम भी गौतम हो सकते थे
पर हमसे घर-बार न छूटा

कौन है ऐसा जिसका जहाँ में
कोई कहीं उस पार न छूटा

अम्न की ख़्वाहिश थी सीने में
हाथ से पर हथियार न छूटा

छूट गया सब काम का लेकिन
जो कुछ था बेकार न छूटा

जो इक बार हुआ दरबारी
उससे फिर दरबार न छूटा

छोड़ दिया बाज़ार ने हमको
पर हमसे बाज़ार न छूटा

-राजेश रेड्डी

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