नक़्श फ़रियादी है, किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन, हर पैकर-ए-तस्वीर का
[(नक़्श = चित्र, निशान), (शोख़ी-ए-तहरीर = शरारत भरी लिखावट, तहरीर की सुन्दरता और बाँकपन), (पैरहन = लिबास, वस्त्र), (पैकर-ए-तस्वीर = चित्र का आकार)]
प्राचीन ईरान में रिवाज़ था कि फ़रियाद करनेवाले काग़ज़ के कपड़े पहनकर आते थे।
काव-काव-ए सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई, न पूछ
सुबह करना शाम का, लाना है जू-ए-शीर का
(काव-काव = खुदाई करना, कड़ी मेहनत), (सख़्तजानी = ऐसी हालत जिसमे प्राण मुश्किल से निकले), (हा = बहुवचन), (तन्हाई = एकांत, अकेलापन),
(काव-काव-ए सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई = तन्हाई की मुसीबतें, विरह के दुःख), (जू-ए-शीर = दूध की नहर)
शीरीं-फ़रहाद की कहानी में फ़रहाद पहाड़ से दूध की नहर काटने गया था और वहीं पर मर गया। इसलिए जू-ए-शीर लाना मतलब कठिन काम करना या कठिन काम में मर जाना)
प्रेमिका से जुदाई और अकेलेपन की मुसीबतें। शाम और रात का काटना उतना ही कठिन है जितनी कठिनाई फरहाद को दूध की नहर लाने में हुई थी।
जज़्ब:-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिये
सीन:-ए-शमशीर से बाहर है, दम शमशीर का
(जज़्ब: = तीव्र उमंग, आवेश), (बेइख़्तियार = जिस पर काबू न हो), (शौक़ = इच्छा, अभिलाषा)
(जज़्ब:-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ = इंतिहाई शौक की हालत, प्रेम का अतिशय भाव), (देखा चाहिये = देखना चाहिये)
(शमशीर = तलवार), (सीन:-ए-शमशीर = तलवार की छाती), (दम = धार, साँस, प्राण)
आगही, दाम-ए-शनीदन, जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ़ 'अ़न्क़ा है, अपने 'आ़लम-ए-तक़रीर का
(आगही = समझ-बूझ, अक़्ल), (दाम = जाल), (शनीदन = सुनना), (दाम-ए-शनीदन = बात को समझने की कोशिश)
(मुद्दआ़ = उद्देश्य, मक़सद), (अ़न्क़ा = दुर्लभ), (आ़लम-ए-तक़रीर = बातों की दुनिया)
बसकि हूँ, ग़ालिब, असीरी में भी आतिश-ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश-दीद़: है हल्क़: मिरी ज़ंजीर का
(असीरी = क़ैद), (आतिश-ज़ेर-ए-पा = पाँव के नीचे की आग, व्याकुल, बेताब)
(मू-ए-आतिश-दीद़: = आग में झुलसा हुआ बाल), (हल्क़: = ज़ंजीर की कड़ी)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
काग़ज़ी है पैरहन, हर पैकर-ए-तस्वीर का
[(नक़्श = चित्र, निशान), (शोख़ी-ए-तहरीर = शरारत भरी लिखावट, तहरीर की सुन्दरता और बाँकपन), (पैरहन = लिबास, वस्त्र), (पैकर-ए-तस्वीर = चित्र का आकार)]
प्राचीन ईरान में रिवाज़ था कि फ़रियाद करनेवाले काग़ज़ के कपड़े पहनकर आते थे।
काव-काव-ए सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई, न पूछ
सुबह करना शाम का, लाना है जू-ए-शीर का
(काव-काव = खुदाई करना, कड़ी मेहनत), (सख़्तजानी = ऐसी हालत जिसमे प्राण मुश्किल से निकले), (हा = बहुवचन), (तन्हाई = एकांत, अकेलापन),
(काव-काव-ए सख़्तजानीहा-ए-तन्हाई = तन्हाई की मुसीबतें, विरह के दुःख), (जू-ए-शीर = दूध की नहर)
शीरीं-फ़रहाद की कहानी में फ़रहाद पहाड़ से दूध की नहर काटने गया था और वहीं पर मर गया। इसलिए जू-ए-शीर लाना मतलब कठिन काम करना या कठिन काम में मर जाना)
प्रेमिका से जुदाई और अकेलेपन की मुसीबतें। शाम और रात का काटना उतना ही कठिन है जितनी कठिनाई फरहाद को दूध की नहर लाने में हुई थी।
जज़्ब:-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिये
सीन:-ए-शमशीर से बाहर है, दम शमशीर का
(जज़्ब: = तीव्र उमंग, आवेश), (बेइख़्तियार = जिस पर काबू न हो), (शौक़ = इच्छा, अभिलाषा)
(जज़्ब:-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ = इंतिहाई शौक की हालत, प्रेम का अतिशय भाव), (देखा चाहिये = देखना चाहिये)
(शमशीर = तलवार), (सीन:-ए-शमशीर = तलवार की छाती), (दम = धार, साँस, प्राण)
आगही, दाम-ए-शनीदन, जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ़ 'अ़न्क़ा है, अपने 'आ़लम-ए-तक़रीर का
(आगही = समझ-बूझ, अक़्ल), (दाम = जाल), (शनीदन = सुनना), (दाम-ए-शनीदन = बात को समझने की कोशिश)
(मुद्दआ़ = उद्देश्य, मक़सद), (अ़न्क़ा = दुर्लभ), (आ़लम-ए-तक़रीर = बातों की दुनिया)
बसकि हूँ, ग़ालिब, असीरी में भी आतिश-ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश-दीद़: है हल्क़: मिरी ज़ंजीर का
(असीरी = क़ैद), (आतिश-ज़ेर-ए-पा = पाँव के नीचे की आग, व्याकुल, बेताब)
(मू-ए-आतिश-दीद़: = आग में झुलसा हुआ बाल), (हल्क़: = ज़ंजीर की कड़ी)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
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