Tuesday, September 25, 2012

नादान लहर नन्ही सी, जब भी कहीं उभरती है
नासमझी में समंदर के, लहजे में बात करती है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस नदी से निकली है, वो सूख भी सकती है
-बशीर बद्र

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