नादान लहर नन्ही सी, जब भी कहीं उभरती है
नासमझी में समंदर के, लहजे में बात करती है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस नदी से निकली है, वो सूख भी सकती है
-बशीर बद्र
नासमझी में समंदर के, लहजे में बात करती है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस नदी से निकली है, वो सूख भी सकती है
-बशीर बद्र
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