Tuesday, September 25, 2012

ज़ख़्म जब भी कोई ज़हनो-दिल पर लगा,
ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज के तार हैं,
चोट खाते रहे और गुनगुनाते रहे
-राही मासूम रज़ा

[(ज़हनो दिल = दिल और दिमाग), (दरीचा - खिड़की)]

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