Saturday, December 22, 2018

मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो कुछ हम भी बदल कर देखें

आँखों में कोई चेहरा हो, हर गाम पे इक पहरा हो
जंगल से चले बस्ती में दुनिया को सँभलकर देखें

(गाम = कदम, पग)

सूरज की तपिश भी देखी, शोलों की कशिश भी देखी
अबके जो घटाएँ छाएँ बरसात में जलकर देखें

दो चार कदम हर रस्ता पहले की तरह लगता है
शायद कोई मंज़र बदले कुछ दूर तो चलकर देखें

अब वक़्त बचा है कितना जो और लड़ें दुनिया से
दुनिया की नसीहत पर भी थोड़ा-सा अमल कर देखें

-निदा फ़ाज़ली

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