Saturday, September 29, 2012

तेरे जलवों में घिर गया आखिर
ज़र्रे को आफ़ताब होना था
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी
कुछ मुझे भी खराब होना था
-
मजाज़ लखनवी

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