mir-o-ghalib
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Spiritual Science
Saturday, September 29, 2012
तेरे
जलवों
में
घिर
गया
आखिर
ज़र्रे
को
आफ़ताब
होना
था
कुछ
तुम्हारी
निगाह
काफिर
थी
कुछ
मुझे
भी
खराब
होना
था
-
मजाज़
लखनवी
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