दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिये बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं
वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को 'ज़ालिब'-'ज़ालिब' कहते हैं
(चाक-ए-गरेबाँ =फटा हुआ गरिबान/ कंठी)
-हबीब जालिब
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिये बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं
वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को 'ज़ालिब'-'ज़ालिब' कहते हैं
(चाक-ए-गरेबाँ =फटा हुआ गरिबान/ कंठी)
-हबीब जालिब
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