Sunday, June 9, 2013

इस शहर-ए-खराबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे

ये हँसता हुआ चाँद ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पाइन्दा हैं ज़र्रों के सहारे

[(पुरनूर = ज्योतिर्मय, प्रकाशमान), (ताबिंदा = प्रकाशमान, रोशन), (पाइन्दा = हमेशा रहने वाला, नित्य, अनश्वर, स्थाई, अचल), (ताबिंदा-ओ-पाइन्दा = हमेशा चमकने वाला)]

हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे

(गुंचा = कली)

हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे

(शबनम = ओस)

कुछ और भी हैं काम हमें ए ग़म-ए-जानाँ
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे

-हबीब जालिब

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