Sunday, September 1, 2019

एक दिल को हज़ार दाग़ लगा

एक दिल को हज़ार दाग़ लगा
अन्दरूने में जैसे बाग़ लगा

उससे यूँ गुल ने रंग पकड़ा है
शमा से जैसे लें चिराग़ लगा

ख़ूबी यक पेचाँ बंद ख़ूबाँ की
ख़ूब बाँधूँगा गर दिमाग़ लगा

(ख़ूबी = हुस्न, योग्यता, प्रतिभा,गुण,), (पेचाँ = घुमावदार, पेचीला, लिपटा हुआ, उलझा हुआ), (बंद = फंदा, पाश, गाँठ ), (ख़ूबाँ = सुन्दर स्त्रियां, माशूक़ लोग, प्रियतमाएँ)

पाँव दामन में खेंच लेंगे हम
हाथ ग़र गोशा-ए-फ़राग़ लगा

(फ़राग़ = अवकाश, छुट्टी, निश्चिंतता, बेफ़िक्री, छुटकारा, मुक्ति, संतोष, चैन), (गोशा = कोना, एकान्त स्थान)

'मीर' उस बे-निशाँ को पाया जान
कुछ हमारा अगर सुराग़ लगा

(बे-निशाँ = गुमनाम, आस्तित्वहीन, जिसका कोई अता-पता न हो)

-मीर तक़ी मीर

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