कितनी मुश्किल उठानी पड़ी
जब हक़ीक़त छुपानी पड़ी
शर्म आती है ये सोच कर
दोस्ती आजमानी पड़ी
हर मसीहा को हर दौर में
सच की क़ीमत चुकानी पड़ी
जो थी मेरी अना के ख़िलाफ़
रस्म वो भी निभानी पड़ी
रास्ते जो दिखाता रहा
राह उसको बतानी पड़ी
थी हर इक बात, जिस बात से
बात वो भी भुलानी पड़ी
-हस्तीमल 'हस्ती'
जब हक़ीक़त छुपानी पड़ी
शर्म आती है ये सोच कर
दोस्ती आजमानी पड़ी
हर मसीहा को हर दौर में
सच की क़ीमत चुकानी पड़ी
जो थी मेरी अना के ख़िलाफ़
रस्म वो भी निभानी पड़ी
रास्ते जो दिखाता रहा
राह उसको बतानी पड़ी
थी हर इक बात, जिस बात से
बात वो भी भुलानी पड़ी
-हस्तीमल 'हस्ती'
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