रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढे तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे |
आगे और बढे तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे |
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे |
-दुष्यंत कुमार|
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे |
-दुष्यंत कुमार|
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