Wednesday, September 26, 2012

तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से,
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराए हैं।

मेरे हमराह भी रुसवाईयां हैं मेरे माज़ी की,
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं।

तआर्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर,
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा।

वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन,
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।

-साहिर लुधियानवी

http://www.youtube.com/watch?v=2wcb9hfHHAE

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