Monday, October 1, 2012

तुम नहीं ग़म नहीं शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं

गाहे-गाहे इसे पढ़ा कीजे
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
(गाहे-गाहे = कभी कभी)

जाने किस किस की मौत आयी है
आज रुख़ पर कोई नक़ाब नहीं

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं

-सईद राही

http://www.youtube.com/watch?v=dqjNFqGcJXA

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