Wednesday, October 10, 2012

दोनों जहान तेरी मोहब्बत मे हार के
वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के

वीराँ है मयकदा ख़ुमो-साग़र उदास हैं
तुम क्या गये कि रूठ गए दिन बहार के

(ख़ुमो-साग़र = सुराही और जाम)

इक फ़ुर्सते-गुनाह मिली, वो भी चार दिन
देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार के

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुम से भी दिलफ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

(दिलफ़रेब = मन को चलने वाले, मनोहर, मोहक)

भूले से मुस्कुरा तो दिये थे वो आज ’फ़ैज़’
मत पूछ वलवले दिले-नाकर्दाकार के

[(वलवले = उमंगें), (दिले-नाकर्दाकार = अनुभवहीन हृदय)]

- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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