Tuesday, October 23, 2012

जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं,
शाखे गुल कैसे हैं खुशबू के मकां कैसे हैं

ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशां कैसे हैं

(सबा = हवा)

कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं

(शगूफ़े = बिना खिला हुआ फूल, कली)

मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकां कैसे हैं

-राही मासूम रज़ा

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