Wednesday, October 24, 2012

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे

(तस्सवुर = कल्पना)

लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ
सर झुकाना नहीं आता, तो झुकायें कैसे

क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

फूल से रंग जुदा होना कोई खेल नहीं
अपनी मिटटी को कहीं छोड़ के जायें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे

जिसने दानिस्ता किया हो नज़रअंदाज़ 'वसीम'
उसको कुछ याद दिलायें, तो दिलायें कैसे

(दानिस्ता = जान-बूझकर)

-वसीम बरेलवी
 

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