Saturday, November 24, 2012

मेरे ख़याल सा है, मेरे ख़्वाब जैसा है,
तुम्हारा हुस्न महकते गुलाब जैसा है।

मैं बंद आंखों से पढ़ता हूं रोज़ वो चिह्न,
जो शायरी की सुहानी किताब जैसा है।

नहीं है कोई ख़रीदार अपना दुनिया में,
हमारा हाल भी उर्दू किताब जैसा है।

ये जिस्मो-जां के घरौंदे बिगड़ने वाले हैं,
वुजूद सब का यहां इक हबाब जैसा है।
[(वुजूद/ वजूद = आस्तित्व), (हबाब = पानी का बुलबुला)]

वो रोज़ प्यार से कहते हैं हम को दीवाना,
ये लफ्ज़ अपने लिए इक ख़िताब जैसा है।

ये पाक साफ़ भी है, और है मुक़द्दस भी,
हमारा दिल भी तो गंगा के आब जैसा है।
[(मुक़द्दस = पवित्र), (आब = पानी, जल)]

जो लोग रखते हैं दिल में कदूरतें अपने,
उन्हें न मिलना भी कारे-सवाब जैसा है। 
[(कदूरतें = वैमनस्य), (कारे-सवाब = पुण्य/ भलाई का कार्य)]

तुम्हें जो सोचें तो होता है कैफ़ सा तारी,
तुम्हारा ज़िक्र भी जामे-शराब जैसा है।
(कैफ़ = नशा, आनंद), (तारी = आ घेरना, छाना)

किये हैं काम बहुत ज़िंदगी ने लाफ़ानी,
सफ़र हयात का गो इक हबाब जैसा है।
(लाफ़ानी = अमर, शाश्वत), (हयात = जीवन), (हबाब = पानी का बुलबुला)]

खड़े हैं कच्चा घड़ा ले के हाथ में हम भी,
नदी का ज़ोर भी 'रहबर` चिनाब जैसा है।
-राजेन्द्र नाथ ‘रहबर’

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