Saturday, February 2, 2013

अँधेरी रात कोई चाल चल न जाए कहीं
नई सहर का महूरत निकल न जाए कहीं

हवस की आँधियाँ चलने लगी हैं,ख़तरा है
दिया ख़ुद अपना उजाला निगल न जाए कहीं

हवा के रुख़ के बदलने का डर नहीं है मुझे
हवा के साथ तेरा रुख़ बदल न जाए कहीं

वो दिल में आग लगाते हैं होशियारी से
ये ध्यान रखते हैं नफ़रत भी जल न जाए कहीं

जो मेरे हाल पे आँसू बहा रहे हैं "नदीम "
उन्हीं को फ़िक्र है हालत सँभल न जाए कहीं

-ओम प्रकाश नदीम

No comments:

Post a Comment