आगाज़ तो होता है, अंजाम नहीं होता,
जब मेरी कहानी में, वो नाम नहीं होता ।
(आगाज़ = आरम्भ)
जब ज़ुल्फ़ की कालिख में,गुम जाए कोई राही,
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता ।
हँस-हँस के जवां दिल के हम क्यों न चुने टुकड़े,
हर शख़्स की क़िस्मत में ईनाम नहीं होता ।
बहते हुए आंसूं ने आँखों से कहा थमकर,
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता ।
दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती,
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता।
-मीना कुमारी 'नाज़'
जब मेरी कहानी में, वो नाम नहीं होता ।
(आगाज़ = आरम्भ)
जब ज़ुल्फ़ की कालिख में,गुम जाए कोई राही,
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता ।
हँस-हँस के जवां दिल के हम क्यों न चुने टुकड़े,
हर शख़्स की क़िस्मत में ईनाम नहीं होता ।
बहते हुए आंसूं ने आँखों से कहा थमकर,
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता ।
दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती,
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता।
-मीना कुमारी 'नाज़'
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