Thursday, May 23, 2013

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

(पामाल = घिसा-पिटा, दुर्दशाग्रस्त)

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना, हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर, क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की ख़ुशबू तक  नहीं आती
ये वो शाखें हैं जिनको अब शजर अच्छा नहीं लगता

(शजर = वृक्ष, पेड़)

ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नों, ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा नहीं लगता

(आतिश-ज़नों = आग लगाने वाले)

-जावेद अख़्तर

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