Sunday, May 19, 2013

हर ख़ुशी में कोई कमी सी है
हँसती आँखों में भी नमी सी है

दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी सी है

किसको समझायेँ किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है

ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी सी है

कह गए हम किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी सी है

हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी सी है
-जावेद अख़्तर

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