Tuesday, June 25, 2013

मज़हबों के नाम पर जब तक सितम होते रहेंगे
दो दिलों के बीच रिश्ते यूँ ही कम होते रहेंगे ।

प्यार के इस खेत में जो बीज बोया नफ़रतों का
आज लाठी, कल तमंचे और बम होते रहेंगे ।

माँ की साड़ी रक्त-रंजित, बाप-भाई रो रहे सब
और कितनी बेटियों पर ये जखम होते रहेंगे ।

ऐ सियासत ! शर्म कर, तू अपनी रोटी सेंकती है
कैसे-कैसे घर जले, कैसे करम होते रहेंगे ।

तुम 'सलिल' अब हो कहाँ, ठण्डी फुहारें तो बिखेरो
कब तलक अंगार भट्टी में गरम होते रहेंगे ।

-आशीष नैथानी 'सलिल'

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