मज़हबों के नाम पर जब तक सितम होते रहेंगे
दो दिलों के बीच रिश्ते यूँ ही कम होते रहेंगे ।
प्यार के इस खेत में जो बीज बोया नफ़रतों का
आज लाठी, कल तमंचे और बम होते रहेंगे ।
माँ की साड़ी रक्त-रंजित, बाप-भाई रो रहे सब
और कितनी बेटियों पर ये जखम होते रहेंगे ।
ऐ सियासत ! शर्म कर, तू अपनी रोटी सेंकती है
कैसे-कैसे घर जले, कैसे करम होते रहेंगे ।
तुम 'सलिल' अब हो कहाँ, ठण्डी फुहारें तो बिखेरो
कब तलक अंगार भट्टी में गरम होते रहेंगे ।
-आशीष नैथानी 'सलिल'
दो दिलों के बीच रिश्ते यूँ ही कम होते रहेंगे ।
प्यार के इस खेत में जो बीज बोया नफ़रतों का
आज लाठी, कल तमंचे और बम होते रहेंगे ।
माँ की साड़ी रक्त-रंजित, बाप-भाई रो रहे सब
और कितनी बेटियों पर ये जखम होते रहेंगे ।
ऐ सियासत ! शर्म कर, तू अपनी रोटी सेंकती है
कैसे-कैसे घर जले, कैसे करम होते रहेंगे ।
तुम 'सलिल' अब हो कहाँ, ठण्डी फुहारें तो बिखेरो
कब तलक अंगार भट्टी में गरम होते रहेंगे ।
-आशीष नैथानी 'सलिल'
No comments:
Post a Comment