Wednesday, June 26, 2013

कोई मौक़ा नहीं मिलता हमें अब मुस्कुराने का
बला का शौक़ था हम को कभी हँसने-हँसाने का

हमें भी टीस की लज्ज़त पसंद आने लगी है क्या
ख़याल आता नहीं ज़ख्मों पे अब मरहम लगाने का

मेरी दीवानगी क्यों मुन्तज़िर है रुत बदलने की
कोई मौसम भी होता है जुनूँ को आज़माने का

(मुन्तज़िर = इंतज़ार या प्रतीक्षा करने वाला, प्रतीक्षारत)

उन्हें मालूम है फिर लौट आएंगे असीर उनके
खुला रहता है दरवाज़ा हमेशा क़ैदखाने का

(असीर = बंदी, क़ैदी)

चटानों को मिली है छूट रस्ता रोक लेने की
मेरी लहरों को हक़ हासिल नहीं है सर उठाने का

अकड़ती जा रही हैं रोज़ गर्दन की रगें 'आलम'
हमें ए काश! आ जाए हुनर भी सर झुकाने का
-आलम खुर्शीद

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