Wednesday, August 14, 2013

चारों तरफ ज़मीं को शादाब देखता हूँ
क्या खूब देखता हूँ जब ख़्वाब देखता हूँ

(शादाब = हरा-भरा, प्रफुल्लित)

इस बात से मुझे भी हैरानी हो रही है
सहरा में हर तरफ मैं सैलाब देखता हूँ

[(सहरा = रेगिस्तान), (सैलाब = बाढ़)]

यह सच अगर कहूँगा सब लोग हंस पड़ेंगे
मैं दिन में भी फ़लक पर महताब देखता हूँ

[(फ़लक = आसमान), (महताब = चन्द्रमा)]

बरसों पुराना रिश्ता दरिया से आज भी है
लहरों को अपनी ख़ातिर बेताब देखता हूँ

मौजों से खेलती थीं जो कश्तियाँ गिर्दाब में
अब उन को साहिलों पर ग़र्क़ाब देखता हूँ

[(गिर्दाब = पानी का भँवर), (ग़र्क़ाब = डूबा हुआ)]

सरे मकीन बाहर सड़कों पे भागते हैं
घर घर में बे-घरी के असबाब देखता हूँ

(मकीन = निवासी, मकान में रहने वाले)

मुझ को यकीं नहीं है इंसान मर चुका है
इंसानियत को लेकिन कमयाब देखता हूँ

(कमयाब = जो कम मिलता हो)

दिल की कुशादगी में शायद कमी हुई है
अपने करीब कम कम अहबाब देखता हूँ

[(कुशादगी = विस्तार, फैलाव, गुंजाइश, खुलापन, उदारता), (अहबाब = दोस्त, मित्र)]

दरिया की सैर करते गुजरी है उम्र, आलम
खुश्की पे भी चलूं तो गिर्दाब देखता हूँ

(खुश्की = सूखापन), (गिर्दाब = पानी का भँवर)

-आलम खुर्शीद

1 comment:

  1. ये तो अपना अपना नजरिया है।
    जो हम देखना चाहेंगे दुनिया वैसी ही नज़र आएगी।

    sp

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