दुश्वार होती ज़ालिम, तुझको भी नींद आनी
लेकिन सुनी न तूने टुक भी मेरी कहानी
मुहताज अब नहीं हम नासेह नसीहतों के
साथ अपने सब वो बातें लेती गई जवानी
-ख़्वाजा मीर 'दर्द'
(नासेह = उपदेशक)
लेकिन सुनी न तूने टुक भी मेरी कहानी
मुहताज अब नहीं हम नासेह नसीहतों के
साथ अपने सब वो बातें लेती गई जवानी
-ख़्वाजा मीर 'दर्द'
(नासेह = उपदेशक)
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ReplyDeletesp
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