रहे सदा जीवनभर जग में, तुम मेरी पहचान पिता,
कहाँ चुका पातीं जीवनभर, इस ऋण को संतान पिता ।
चले तुम्हारी अंगुली थामे, हम पथरीली राहों पर,
बिना तुम्हारे वो सब रस्ते, रह जाते अनजान पिता ।
मेरे तुतलाते बोलों ने अर्थ तुम्हीं से पाया था,
मेरी बीमारी में अक्सर बन जाते लुकमान पिता ।
गुरु, जनक, पालक, पोषक, रक्षक तुम भाग्यविधाता भी,
मोल तुम्हारा जान न पाए, हम ऐसे नादान पिता ।
अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम
सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा, हमसे यह एहसान पिता ।
तुम माँ के माथे की बिंदिया, और हमारा संबल थे,
बिना तुम्हारे माँ के संग हम, रो-रो कर हलकान पिता ।
जिनके कंधे चढ़ कर हम नें जग के मेले देखे थे,
अपने कांधे तुम्हें चढ़ा कर, छोड़ आये शमशान पिता ।
-आर.सी. शर्मा "आरसी"
कहाँ चुका पातीं जीवनभर, इस ऋण को संतान पिता ।
चले तुम्हारी अंगुली थामे, हम पथरीली राहों पर,
बिना तुम्हारे वो सब रस्ते, रह जाते अनजान पिता ।
मेरे तुतलाते बोलों ने अर्थ तुम्हीं से पाया था,
मेरी बीमारी में अक्सर बन जाते लुकमान पिता ।
गुरु, जनक, पालक, पोषक, रक्षक तुम भाग्यविधाता भी,
मोल तुम्हारा जान न पाए, हम ऐसे नादान पिता ।
अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम
सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा, हमसे यह एहसान पिता ।
तुम माँ के माथे की बिंदिया, और हमारा संबल थे,
बिना तुम्हारे माँ के संग हम, रो-रो कर हलकान पिता ।
जिनके कंधे चढ़ कर हम नें जग के मेले देखे थे,
अपने कांधे तुम्हें चढ़ा कर, छोड़ आये शमशान पिता ।
-आर.सी. शर्मा "आरसी"
No comments:
Post a Comment