Saturday, October 5, 2013

आरम्भ है प्रचंड

आरम्भ है प्रचंड
बोलें मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो

आन बान शान
या कि जान का हो दान
आज इक धनुष के बाण पे उतार दो

मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है

कृष्ण की पुकार है ये
भागवत का सार है
कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवों की भीड़ हो
या पांडवों का नीड़ हो
जो लड़ सका है वोही तो महान है

जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं
तो मौत से भी क्यों डरें
ये जा के आसमान में दहाड़ दो

आरम्भ है प्रचंड
बोलें मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या कि जान का हो दान
आज इक धनुष के बाण पे उतार दो

आरम्भ है प्रचंड

वो दया का भाव या कि
शौर्य का चुनाव या कि
हार का वो घाव तुम ये सोच लो

या कि भूरे भाल पर
जला रहे विजय का लाल
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो
या कि केसरी हो ताल तुम ये सोच लो

जिस कवि की कल्पना में
ज़िन्दगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती मसों में आज
फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो

आरम्भ है प्रचंड
बोलें मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान
या कि जान का हो दान
आज इक धनुष के बाण पे उतार दो

आरम्भ है प्रचंड
आरम्भ है प्रचंड
आरम्भ है प्रचंड

-पीयूष मिश्रा


1 comment:

  1. वीर रस की गरिमापूर्ण अभिव्यक्ति.....
    sp

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