जो निगाह की थी ज़ालिम ! तो फिर आँख क्यों चुराई ?
वही तीर क्यों न मारा जो जिगर के पार होता
-अमीर मीनाई
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
-मिर्ज़ा ग़ालिब
वही तीर क्यों न मारा जो जिगर के पार होता
-अमीर मीनाई
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
-मिर्ज़ा ग़ालिब
कभी आर कभी पार
ReplyDeleteलागा तीरे नज़र...