क्यों तूने चश्मे-लुत्फ़ से देखा ग़ज़ब किया ?
क़ुर्बान उस निगाह के जिसमें ग़रूर था
-दाग़
(चश्मे-लुत्फ़ = आनंद या अनुकंपा की नज़र से)
नीची रक़ीब से न हुई आँख उम्र भर
झुकता मैं क्या ? नज़र में तुम्हारा ग़रूर था
-अमीर मीनाई
(रक़ीब = प्रतिद्वंदी)
क़ुर्बान उस निगाह के जिसमें ग़रूर था
-दाग़
(चश्मे-लुत्फ़ = आनंद या अनुकंपा की नज़र से)
नीची रक़ीब से न हुई आँख उम्र भर
झुकता मैं क्या ? नज़र में तुम्हारा ग़रूर था
-अमीर मीनाई
(रक़ीब = प्रतिद्वंदी)
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