Monday, December 2, 2013

दर ओ दीवार पे शक्लें सी बनाने आई
फिर ये बारिश मेरी तन्हाई चुराने आई

ज़िन्दगी बाप की मानिंद सजा देती है
रहम-दिल माँ की तरह मौत बचाने आई

आज कल फिर दिल-ए-बर्बाद की बातें है वही
हम तो समझे थे के कुछ अक्ल ठिकाने आई

दिल में आहट सी हुई रूह में दस्तक गूँजी
किस की खुशबू ये मुझे मेरे सिरहाने आई

मैं ने जब पहले-पहल अपना वतन छोड़ा था
दूर तक मुझ को इक आवाज़ बुलाने आई

तेरी मानिंद तेरी याद भी ज़ालिम निकली
जब भी आई है मेरा दिल ही दुखाने आई
-कैफ़ भोपाली

No comments:

Post a Comment