Friday, December 19, 2014

किसी की आँख जो पुरनम नहीं है

किसी की आँख जो पुरनम नहीं है
न समझो ये के उसको ग़म नहीं है ।

(पुरनम = नम, गीली)

सवाद-ए-दर्द में तन्हा खडा हूँ
पलट जाऊं मगर मौसम नहीं है ।

(सवाद-ए-दर्द = दर्द की कालिमा)

समझ में कुछ नहीं आता किसी की
अग़र्चे गुफ़्तगु मुबहम नहीं है ।

(अग़र्चे = यद्यपि, यदि), (मुबहम = अस्पष्ट, संदिग्ध)

सुलगता नहीं तारीक़ जंगल
तलब की लौ अगर मद्धम नहीं है ।

(तारीक़ = अंधकारमय)

ये बस्ती है सितम परवरदिगाँ की
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है ।

किनारा दूसरा दरिया का जैसे
वो साथी है मगर महरम नहीं है ।

(महरम = अंतरंग मित्र)

दिलों की रौशनी बुझने ना देना
वजूद-ए-तीरगी मोहकम नहीं है ।

(वजूद-ए-तीरगी = अन्धकार का आस्तित्व), (मोहकम = मुहकम = ढृढ़, मज़बूत, पुख्ता)

मैं तुम को चाह कर पछता रहा हूं
कोई इस ज़ख्म का मरहम नहीं है ।

जो कोई सुन सके 'अमजद' तो दुनिया
बजूज़ इक बाज़गश्त-ए-ग़म नहीं है ।

(बजूज़ = अतिरिक्त, सिवाय, इसको छोड़कर), (बाज़गश्त =वापिस आना, लौटना), (बाज़गश्त-ए-ग़म = दुःख का वापस आना)

-अमजद इस्लाम अमजद


आबिदा परवीन/ Abida Parveen


No comments:

Post a Comment