किसी की आँख जो पुरनम नहीं है
न समझो ये के उसको ग़म नहीं है ।
(पुरनम = नम, गीली)
सवाद-ए-दर्द में तन्हा खडा हूँ
पलट जाऊं मगर मौसम नहीं है ।
(सवाद-ए-दर्द = दर्द की कालिमा)
समझ में कुछ नहीं आता किसी की
अग़र्चे गुफ़्तगु मुबहम नहीं है ।
(अग़र्चे = यद्यपि, यदि), (मुबहम = अस्पष्ट, संदिग्ध)
सुलगता नहीं तारीक़ जंगल
तलब की लौ अगर मद्धम नहीं है ।
(तारीक़ = अंधकारमय)
ये बस्ती है सितम परवरदिगाँ की
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है ।
किनारा दूसरा दरिया का जैसे
वो साथी है मगर महरम नहीं है ।
(महरम = अंतरंग मित्र)
दिलों की रौशनी बुझने ना देना
वजूद-ए-तीरगी मोहकम नहीं है ।
(वजूद-ए-तीरगी = अन्धकार का आस्तित्व), (मोहकम = मुहकम = ढृढ़, मज़बूत, पुख्ता)
मैं तुम को चाह कर पछता रहा हूं
कोई इस ज़ख्म का मरहम नहीं है ।
जो कोई सुन सके 'अमजद' तो दुनिया
बजूज़ इक बाज़गश्त-ए-ग़म नहीं है ।
(बजूज़ = अतिरिक्त, सिवाय, इसको छोड़कर), (बाज़गश्त =वापिस आना, लौटना), (बाज़गश्त-ए-ग़म = दुःख का वापस आना)
-अमजद इस्लाम अमजद
आबिदा परवीन/ Abida Parveen
न समझो ये के उसको ग़म नहीं है ।
(पुरनम = नम, गीली)
सवाद-ए-दर्द में तन्हा खडा हूँ
पलट जाऊं मगर मौसम नहीं है ।
(सवाद-ए-दर्द = दर्द की कालिमा)
समझ में कुछ नहीं आता किसी की
अग़र्चे गुफ़्तगु मुबहम नहीं है ।
(अग़र्चे = यद्यपि, यदि), (मुबहम = अस्पष्ट, संदिग्ध)
सुलगता नहीं तारीक़ जंगल
तलब की लौ अगर मद्धम नहीं है ।
(तारीक़ = अंधकारमय)
ये बस्ती है सितम परवरदिगाँ की
यहाँ कोई किसी से कम नहीं है ।
किनारा दूसरा दरिया का जैसे
वो साथी है मगर महरम नहीं है ।
(महरम = अंतरंग मित्र)
दिलों की रौशनी बुझने ना देना
वजूद-ए-तीरगी मोहकम नहीं है ।
(वजूद-ए-तीरगी = अन्धकार का आस्तित्व), (मोहकम = मुहकम = ढृढ़, मज़बूत, पुख्ता)
मैं तुम को चाह कर पछता रहा हूं
कोई इस ज़ख्म का मरहम नहीं है ।
जो कोई सुन सके 'अमजद' तो दुनिया
बजूज़ इक बाज़गश्त-ए-ग़म नहीं है ।
(बजूज़ = अतिरिक्त, सिवाय, इसको छोड़कर), (बाज़गश्त =वापिस आना, लौटना), (बाज़गश्त-ए-ग़म = दुःख का वापस आना)
-अमजद इस्लाम अमजद
आबिदा परवीन/ Abida Parveen
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