Sunday, May 17, 2015

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
इक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे

अब भीक मांगने के तरीक़े बदल गए
लाज़िम नहीं कि हाथ में कासा दिखाई दे

(कासा = भिक्षा-पात्र)

नेज़े पे रखके और मेरा सर बुलंद कर
दुनिया को इक चिराग़ तो जलता दिखाई दे

(नेज़ा = भाला)

दिल में तेरे ख़याल की बनती है एक धनक
सूरज-सा आइने से गुज़रता दिखाई दे

(धनक = इन्द्रधनुष)

चल ज़िंदगी की जोत जगाएं, अजब नहीं
लाशों के दरमियां कोई रस्ता दिखाई दे

हर शै मेरे बदन की ज़फ़र क़त्ल हो चुकी
एक दर्द की किरन है कि ज़िंदा दिखाई दे

-ज़फ़र गोरखपुरी

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