Thursday, December 27, 2018

ये जो फैला हुआ ज़माना है

ये जो फैला हुआ ज़माना है
इस का रक़्बा ग़रीब-ख़ाना है

(रक़्बा = क्षेत्रफल, इलाका)

कोई मंज़र सदा नहीं रहता
हर तअ'ल्लुक़ मुसाफ़िराना है

देस परदेस क्या परिंदों का
आब-ओ-दाना ही आशियाना है

कैसी मस्जिद कहाँ का बुत-ख़ाना
हर जगह उस का आस्ताना है

(आस्ताना =दहलीज़, चौखट)

इश्क़ की उम्र कम ही होती है
बाक़ी जो कुछ है दोस्ताना है

-निदा फ़ाज़ली

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